गुरुवार, 31 जनवरी 2013
सभ्य समाज...
हमें चिढ़ है,
भेड़ चाल से,
तभी तो हम रहते हैं,
हमेशा, जल्दी में,
आगे निकलने की होड़ में...
दूसरों का रास्ता काटते
भेड़ चाल से,
तभी तो हम रहते हैं,
हमेशा, जल्दी में,
आगे निकलने की होड़ में...
दूसरों का रास्ता काटते
NOOTAN
नूतन पत्रिका हाथ में लिये, नूतन नाम की एक, आधुनिक पत्नी के साथ पति बस में आ रहे थे। पत्नी का नाम नूतन था, हम कुछ समझे
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
18-नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!
जामें वफ़ा पे
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!
जामें वफ़ा पे
वक़्त की रफ़्तार
वही सुबहें , वही रातें
वही रिश्ते , वही नाते ।
वही मंजिल वही राहें
वही हसरत ,वही चाहें ।
वही लोग ,वही बातें
वही
वही रिश्ते , वही नाते ।
वही मंजिल वही राहें
वही हसरत ,वही चाहें ।
वही लोग ,वही बातें
वही
दलितनामा
दलित शब्द इस देश का वह अभिशप्त तमगा है
जो एक बार माथे पर लग गया तो
सात जन्मों तक हट नहीं सकता ।
जिसके नाम के साथ
जो एक बार माथे पर लग गया तो
सात जन्मों तक हट नहीं सकता ।
जिसके नाम के साथ
बदलाव की पहल
फ़र्क मिट नहीं सकता
दूरियाँ सिमट नहीं सकती ।
फासले कम नहीं हो सकते
कुरीतियाँ ढह नहीं सकती ।
अपनत्व आ नहीं
दूरियाँ सिमट नहीं सकती ।
फासले कम नहीं हो सकते
कुरीतियाँ ढह नहीं सकती ।
अपनत्व आ नहीं
तो क्या फिल्म चल जायेगी
चार पैसे जेब में डाल कर घर से चल दें,
तो क्या जिन्दगी निकल जायेगी ?
जंगल से जा रहे हों ओर शेर सामने आ जाये,
तो क्या
तो क्या जिन्दगी निकल जायेगी ?
जंगल से जा रहे हों ओर शेर सामने आ जाये,
तो क्या
बुधवार, 30 जनवरी 2013
डॉ. कर्मानंद आर्य की कवितायेँ
उनके घर का पानी मत पीना / डॉ. कर्मानंद आर्य
तीन हजार साल पहले
मेरे पूर्वज नहीं गांठते थे जूते
नहीं करते थे
तीन हजार साल पहले
मेरे पूर्वज नहीं गांठते थे जूते
नहीं करते थे
तीन स्मृतियाँ
तीन स्मृतियाँ / डॉ. कर्मानंद आर्य
समय के सहचर
मेरे तीन गुरू, माता पिता आचार्य
स्कूल जाते हुए मेरे पिता ने
पहली
समय के सहचर
मेरे तीन गुरू, माता पिता आचार्य
स्कूल जाते हुए मेरे पिता ने
पहली
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ / डॉ. कर्मानंद आर्य
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत
आधुनिक एकलव्य कथा
आधुनिक एकलव्य कथा / डॉ. कर्मानंद आर्य
तो क्या-क्या बताऊँ महाराज!
असगुन कथा सी
लम्बी उसांस भारती है कंक्रीट
मेरा
तो क्या-क्या बताऊँ महाराज!
असगुन कथा सी
लम्बी उसांस भारती है कंक्रीट
मेरा
33- [ग़ज़ल] मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
ग़ज़ल
मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
दर्दे दिल दर्दे जिगर ग़म को सुनाने आए
उनकी आमद की ख़बर पहुची फ़लक़
मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
दर्दे दिल दर्दे जिगर ग़म को सुनाने आए
उनकी आमद की ख़बर पहुची फ़लक़
32-दर्द देकर न दवा दे मुझको
ग़ज़ल
दर्द देकर न दवा दे मुझको
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको
प्यार का यूँ न सिला दे मुझको
दोस्त बनकर न
दर्द देकर न दवा दे मुझको
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको
प्यार का यूँ न सिला दे मुझको
दोस्त बनकर न
32-दर्द देकर न दवा दे मुझको
ग़ज़ल
दर्द देकर न दवा दे मुझको
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको
प्यार का यूँ न सिला दे मुझको
दोस्त बनकर न
दर्द देकर न दवा दे मुझको
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको
प्यार का यूँ न सिला दे मुझको
दोस्त बनकर न
31-चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
ग़ज़ल
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आंगन में सुरमई उजाला है
जब भी पाव बहके हैं
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आंगन में सुरमई उजाला है
जब भी पाव बहके हैं
30 -ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए
ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
30 -ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए
ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ / डॉ. कर्मानंद आर्य
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ / डॉ. कर्मानंद आर्य
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत से
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत से
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ / डॉ. कर्मानंद आर्य
अर्थी उठाने वाले मेरे खुरदरे हाथ / डॉ. कर्मानंद आर्य
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत से
हँसो जितना हँस सकते हो
मुझसे उतनी ही नफरत करो जितनी मौत से
आधुनिक एकलव्य कथा / डॉ. कर्मानंद आर्य
आधुनिक एकलव्य कथा / डॉ. कर्मानंद आर्य
तो क्या-क्या बताऊँ महाराज!
असगुन कथा सी
लम्बी उसांस भारती है कंक्रीट
मेरा
तो क्या-क्या बताऊँ महाराज!
असगुन कथा सी
लम्बी उसांस भारती है कंक्रीट
मेरा
तीन स्मृतियाँ / डॉ. कर्मानंद आर्य
तीन स्मृतियाँ / डॉ. कर्मानंद आर्य
समय के सहचर
मेरे तीन गुरू, माता पिता आचार्य
स्कूल जाते हुए मेरे पिता ने
पहली
समय के सहचर
मेरे तीन गुरू, माता पिता आचार्य
स्कूल जाते हुए मेरे पिता ने
पहली
डॉ. कर्मानंद आर्य की कवितायेँ
उनके घर का पानी मत पीना / डॉ. कर्मानंद आर्य
तीन हजार साल पहले
मेरे पूर्वज नहीं गांठते थे जूते
नहीं करते थे बेगारी
तीन हजार साल पहले
मेरे पूर्वज नहीं गांठते थे जूते
नहीं करते थे बेगारी
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
रोशनी
देखा था फलक पर रात
जिसे रोशनी में दमकते हुए...
सुना है सूरज की रोशनी में
उस ‘चाँद’ ने दम तोड़ दिया.
रविश
जिसे रोशनी में दमकते हुए...
सुना है सूरज की रोशनी में
उस ‘चाँद’ ने दम तोड़ दिया.
रविश
बाबुल
मेरे आँशु सुख गई सब !
रो रो के अब
आकाश हि बरसे !
ठुमक ठुमक नाचती थी आगन मे !
दुल्हन बनके
निकली अब घर से !
बेटी तो है बस
रो रो के अब
आकाश हि बरसे !
ठुमक ठुमक नाचती थी आगन मे !
दुल्हन बनके
निकली अब घर से !
बेटी तो है बस
बाबुल
मेरे आँशु सुख गई सब !
रो रो के अब
आकाश हि बरसे !
ठुमक ठुमक नाचती थी आगन मे !
दुल्हन बनके
निकली अब घर से !
बेटी तो है बस
रो रो के अब
आकाश हि बरसे !
ठुमक ठुमक नाचती थी आगन मे !
दुल्हन बनके
निकली अब घर से !
बेटी तो है बस
माँ
विविध रूप तेरे जीवन के,
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।
हम तो तेरे
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।
हम तो तेरे
माँ
विविध रूप तेरे जीवन के,
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।
हम तो तेरे
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।
हम तो तेरे
मेरा बिखरना....
यूँ तो तू भी ...
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
मेरा बिखरना....
यूँ तो तू भी ...
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
मेरा बिखरना....
यूँ तो तू भी ...
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
मेरा बिखरना....
यूँ तो तू भी ...
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
तेरी जुस्तज़ू भी
और
तेरा वज़ूद भी है
पर इन सबके बीच
मेरा होना ...
मेरा न होना ...
कहीं बिखर गया है
सोमवार, 28 जनवरी 2013
NOOTAN
नूतन पत्रिका हाथ में लिये, नूतन नाम की एक, आधुनिक पत्नी के साथ पति बस में आ रहे थे। पत्नी का नाम नूतन था, हम कुछ समझे
बाप रे
कवि सम्मेलन में - मैं कविता सुना तो दूँ
मगर मुझे जो तालियाँ मिलेंगी, बाप रे !
तेरे मोहल्ले में
मगर मुझे जो तालियाँ मिलेंगी, बाप रे !
तेरे मोहल्ले में
नहीं कोई मुकाम आया
मुझे तब कहां आराम आया
बेवफाओं में जब मेरा नाम आया
निकले थे इश्क में नाम करने
नतीजे में खुद को बदनाम पाया
वो हमसे
बेवफाओं में जब मेरा नाम आया
निकले थे इश्क में नाम करने
नतीजे में खुद को बदनाम पाया
वो हमसे
जीत लिया जहान
(२ अप्रेल २०११ को भारत द्वारा क्रिकेट विश्वकप जीतने पर रचित कविता)
विश्वकप फाइनल में मुम्बई में था श्रीलंका से
विश्वकप फाइनल में मुम्बई में था श्रीलंका से
शनिवार, 26 जनवरी 2013
हिन्दी राष्ट्र का प्राण
हिन्दी राष्ट्र का प्राण
हिन्दी राष्ट्र का प्राण, हिन्दी हिन्द का अभिमान
हिन्दी है गौरव गान, हिन्दी है काव्य का
हिन्दी राष्ट्र का प्राण, हिन्दी हिन्द का अभिमान
हिन्दी है गौरव गान, हिन्दी है काव्य का
शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
अंतर
अंतर
निजी और सरकारी अस्पतात मे
मुझे तो केवल यही अंतर
नजर आता है.
एक मे डाकटर के व्यापार से
दूसरे मे व्यवहार
निजी और सरकारी अस्पतात मे
मुझे तो केवल यही अंतर
नजर आता है.
एक मे डाकटर के व्यापार से
दूसरे मे व्यवहार
गुरुवार, 24 जनवरी 2013
कर्तव्य का निर्माण
कर्तव्यों से भी बडे कर्तव्य है, उसी को निभाओ. बन्धनों मे बँधकर, वास्तविक जीवन का कर्तव्य न भूल जाओ. जीवन बना
बुधवार, 23 जनवरी 2013
सरस्वती वन्दना
हे मात वीणावादिनी, जय जय तुम्हारी भगवती
जय शारदे अम्बे शुभे, जय हो सुमाता भारती
तुम चन्द्रमा, रवि हो
जय शारदे अम्बे शुभे, जय हो सुमाता भारती
तुम चन्द्रमा, रवि हो
बड़ा मजा आता है
किस-किस को किस -किस काम में बड़ा मजा आता है जरा सोचिये तो :
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प्रोफेसर को बखान
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प्रोफेसर को बखान
आदमी बेवकूफ है ?
कुछ लोगों का यह मानना है की दुनिया का हर आदमी बेवकूफ है, जी हाँ इस से बात से में भी इतेफाक
रखता हूँ और मैं भी कभी कभी
रखता हूँ और मैं भी कभी कभी
झेलम तुम न बदली-
न बदली चेनाब,
कोहाट भी वहीं का वहीं खड़ा,
तक्षशीला ताने गर्दन,
गवाह हैं सब के सब,
संग की खिलंदड़ी का।
झेलम तुम
कोहाट भी वहीं का वहीं खड़ा,
तक्षशीला ताने गर्दन,
गवाह हैं सब के सब,
संग की खिलंदड़ी का।
झेलम तुम
महफिल
शरिफो कि बस्ति से हि
महफिल सजाई जाती
दुपट्टे खिच महफिल मे
नुमाइस कराई जाती।।
कडवी रात जी के
बिदाइ कराई
महफिल सजाई जाती
दुपट्टे खिच महफिल मे
नुमाइस कराई जाती।।
कडवी रात जी के
बिदाइ कराई
नारी शक्ति
अब नारीयो ने भी लीया साहस से काम !
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र
मंगलवार, 22 जनवरी 2013
जीने का हुनर
यहाँ मसाईलों के अंधेरे हैं बहुत
चलो वक्त की साख से कुछ पत्ते तोड़ लूँ...
गम्-ए-दौरां ने तराशा है मुझे
ऐ ग़ालिब,
चलो वक्त की साख से कुछ पत्ते तोड़ लूँ...
गम्-ए-दौरां ने तराशा है मुझे
ऐ ग़ालिब,
जीने का हुनर
यहाँ मसाईलों के अंधेरे हैं बहुत
चलो वक्त की साख से कुछ पत्ते तोड़ लूँ...
गम्-ए-दौरां ने तराशा है मुझे
ऐ ग़ालिब,
चलो वक्त की साख से कुछ पत्ते तोड़ लूँ...
गम्-ए-दौरां ने तराशा है मुझे
ऐ ग़ालिब,
तबाही
तबाही
तबाह होने से पहले भीतर की चुभन लगी सिमटने
गिडगिडाती आत्मा ....
परखच्चो सा ढांचा चाहने लगा जिन्दगी
मौत सही पर
तबाह होने से पहले भीतर की चुभन लगी सिमटने
गिडगिडाती आत्मा ....
परखच्चो सा ढांचा चाहने लगा जिन्दगी
मौत सही पर
उदयाचल
जब भास्कर आते है खुशियों का दिप जलाते है !
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
सोमवार, 21 जनवरी 2013
रविवार, 20 जनवरी 2013
मोहब्बत का तराना कभी, इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
मोहब्बत का तराना कभी,
इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
गुमसुम कही अजनबी खयालो में खोये थे,
जब ये दास्ताँ सुनाया था !
खिल
इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
गुमसुम कही अजनबी खयालो में खोये थे,
जब ये दास्ताँ सुनाया था !
खिल
शनिवार, 19 जनवरी 2013
राशन ओर भाषण
देते हैं सब भाषण - नहीं देता कोई राशन
देना पड़ जाये जो राशन - तो भूल जायेंगे भाषण
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कैसा है यह बच्चा
देना पड़ जाये जो राशन - तो भूल जायेंगे भाषण
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कैसा है यह बच्चा
प्रेम पथ
फूल मुरझा रहें
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
सर्दियों का मौसम !!!
न जाने
कैसे गुजरेगा
अब के बरस ....
सर्दियों का मौसम !!!
सपनों के धागों से बुना स्वेटर
उधड़ गया है
जगह-जगह से
कैसे गुजरेगा
अब के बरस ....
सर्दियों का मौसम !!!
सपनों के धागों से बुना स्वेटर
उधड़ गया है
जगह-जगह से
प्रेम पथ
फूल मुरझा रहें
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
पौधे की आस
गर्मी की चिलचिलाती धूप में
लेकर चले मुझें जमीन में दफनाने
दफन हुआ थोड़ी राहत आई नमी से
नमी ने किया मुझ पर
लेकर चले मुझें जमीन में दफनाने
दफन हुआ थोड़ी राहत आई नमी से
नमी ने किया मुझ पर
खुला आसमाँ
सोचता हूँ उड़ता चलूँ
इस नीले आसमाँ पर
चहचहाते चिडि़यों से पंख लगाकर
नीली छतरी सी ओढ़ कर
व कटी पतंग की डोर
इस नीले आसमाँ पर
चहचहाते चिडि़यों से पंख लगाकर
नीली छतरी सी ओढ़ कर
व कटी पतंग की डोर
धरती के मनुष्य पर उपकार
सरल नही अबोध है ये धरती
इस पर जो जन्माओं व देती सोना धरती
नील अंम्बर की छबियां पर रह गुजर करती धरती
पल-पल जिनकी
इस पर जो जन्माओं व देती सोना धरती
नील अंम्बर की छबियां पर रह गुजर करती धरती
पल-पल जिनकी
महफिल में अब होस कहाँ
आओं सुनों बैठ़ो
बैठों सुनो आओ
इस दिल की महफिल में
जो रमा है समा है चांदनी रात में
व पायल की झंनकार लेकर
बलखाती
बैठों सुनो आओ
इस दिल की महफिल में
जो रमा है समा है चांदनी रात में
व पायल की झंनकार लेकर
बलखाती
मेरी वफा का इजहार
आज तुम ना कहना मेरी वफा का इजहार करने को
मेरी वफा पे शक ना करना मुझें दीदार कर लेने दो
आज तुम ना कहना मेरी वफा का
मेरी वफा पे शक ना करना मुझें दीदार कर लेने दो
आज तुम ना कहना मेरी वफा का
आसमान के तारे
तारे देखों आसमान के तारे
टिमटिम करते हम से कुछ कहते तारे
पास न जाना नही तो मुरझा जायगें सारे
येसी प्रित लगाओ मन
टिमटिम करते हम से कुछ कहते तारे
पास न जाना नही तो मुरझा जायगें सारे
येसी प्रित लगाओ मन
पुकार प्रितम की
दूर कही शहर तेरी खुशबू आती रही
हम समझ ना सके वह हमसे दूर जाती रही
अब सोच कर क्या करे
जो वक्त हाथ से जाता रहा
तेरी
हम समझ ना सके वह हमसे दूर जाती रही
अब सोच कर क्या करे
जो वक्त हाथ से जाता रहा
तेरी
सर्दियों का मौसम !!!
न जाने
कैसे गुजरेगा
अब के बरस ....
सर्दियों का मौसम !!!
सपनों के धागों से बुना स्वेटर
उधड़ गया है
जगह-जगह से
कैसे गुजरेगा
अब के बरस ....
सर्दियों का मौसम !!!
सपनों के धागों से बुना स्वेटर
उधड़ गया है
जगह-जगह से
प्रेम पथ
फूल मुरझा रहें
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
प्रेम पथ
फूल मुरझा रहें
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
लौट अब तो
ये निर्जन पथ होने वाला
क्यूं खडा खामोश
तेरा कुछ तो खोने वाला
हाँ, बना था तू ही उस दिन
सह
यह हिन्दुस्तान है जनाब
नमस्कार- सतश्री अकाल- आदाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यहाँ नेता बिकता है - यहाँ ईमान बिकता
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यहाँ नेता बिकता है - यहाँ ईमान बिकता
यह हिन्दुस्तान है जनाब
नमस्कार- सतश्री अकाल- आदाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यहाँ नेता बिकता है - यहाँ ईमान बिकता
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यह हिन्दुस्तान है जनाब
यहाँ नेता बिकता है - यहाँ ईमान बिकता
शुक्रवार, 18 जनवरी 2013
हुस्न कि हुर
हुस्न कि वह हुर थी
जो कहर ढाह कर
चलि गई
दिल कि बातें कहते उनको
पर मुस्कुराकर
चलि गई
आई थी वो माशुम बनकर
और
जो कहर ढाह कर
चलि गई
दिल कि बातें कहते उनको
पर मुस्कुराकर
चलि गई
आई थी वो माशुम बनकर
और
वक्त
हरी के हात मे
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
दामिनी तुम जिंदा हो
दामिनी तुम जिंदा हो
हर औरत का हौंसला बनकर
न्याय की आवाज़ बनकर
वक्त की ज़रूरत बनकर
आस्था की पुकार बनकर
एकता की
हर औरत का हौंसला बनकर
न्याय की आवाज़ बनकर
वक्त की ज़रूरत बनकर
आस्था की पुकार बनकर
एकता की
गुरुवार, 17 जनवरी 2013
कौन सुननेवाला है यह ?
होती है रात, होता है दिऩ
पऱ न होते एकसाथ दोनों
प्रक्रुति में, मगर होती है
कही अजब है यही |
और कही नहीं यारों
होती
पऱ न होते एकसाथ दोनों
प्रक्रुति में, मगर होती है
कही अजब है यही |
और कही नहीं यारों
होती
शांति वार्ता
शांति वार्ता
यथावत रहेगी ..
चाहे सर कटे ..
ज़ुका हुआ सर ..
और भी क्या कर सकता हे ? - परेश दवे
(भारत सरकारकी अधीर शांति
यथावत रहेगी ..
चाहे सर कटे ..
ज़ुका हुआ सर ..
और भी क्या कर सकता हे ? - परेश दवे
(भारत सरकारकी अधीर शांति
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
लिखने वाले ने लिखा मुझे
ये सोचकर
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
मंच की मल्लिका मैं बन ना सकी
कदरदान मुझको कोई मिल ना
ये सोचकर
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
मंच की मल्लिका मैं बन ना सकी
कदरदान मुझको कोई मिल ना
ग़ज़ल
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
ग़ज़ल
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..
जीवन के सफ़र में जो मुसीबत
माँ मेरी , ना तू फ़िक्र करना
माँ मेरी, ना तू फ़िक्र करना
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
माँ मेरी , ना तू फ़िक्र करना
माँ मेरी, ना तू फ़िक्र करना
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
माँ मेरी , ना तू फ़िक्र करना
माँ मेरी, ना तू फ़िक्र करना
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
बेटे
करने रक्षा आँचल की तेरे, है सीमा पर खड़े|
सुभद्रा की कलम से,हमने सुनी कहानी है
करते
बुधवार, 16 जनवरी 2013
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
लिखने वाले ने लिखा मुझे
ये सोचकर
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
मंच की मल्लिका मैं बन ना सकी
कदरदान मुझको कोई मिल ना
ये सोचकर
मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा
मंच की मल्लिका मैं बन ना सकी
कदरदान मुझको कोई मिल ना
जमीन के अमीन
.
.05.08.2010 1
जमीन के अमीन
घर-घर ढूढों व जंजीरे व तक्दीरें
आज आई है इन्तहा की घडीं
जागो ओर देखो अपना गाॅंव अपना
.05.08.2010 1
जमीन के अमीन
घर-घर ढूढों व जंजीरे व तक्दीरें
आज आई है इन्तहा की घडीं
जागो ओर देखो अपना गाॅंव अपना
जमीन के अमीन
.
.05.08.2010 1
जमीन के अमीन
घर-घर ढूढों व जंजीरे व तक्दीरें
आज आई है इन्तहा की घडीं
जागो ओर देखो अपना गाॅंव अपना
.05.08.2010 1
जमीन के अमीन
घर-घर ढूढों व जंजीरे व तक्दीरें
आज आई है इन्तहा की घडीं
जागो ओर देखो अपना गाॅंव अपना
sar..sarkar
शांति वार्ता
यथावत रहेगी ..
चाहे सर कटे ..
ज़ुका हुआ सर ..
और भी क्या कर सकता हे ? - परेश दवे
(भारत सरकारकी अधीर शांति
यथावत रहेगी ..
चाहे सर कटे ..
ज़ुका हुआ सर ..
और भी क्या कर सकता हे ? - परेश दवे
(भारत सरकारकी अधीर शांति
मंगलवार, 15 जनवरी 2013
डर
डर
डर क्या है बाबूजी,
संासें थाम कर बैठना,
घड़ी की गति मति सुनना,
मन भन्ना जाना।
डर कैसे आता है-
दबे पांव,
या कि
डर क्या है बाबूजी,
संासें थाम कर बैठना,
घड़ी की गति मति सुनना,
मन भन्ना जाना।
डर कैसे आता है-
दबे पांव,
या कि
डर
डर
डर क्या है बाबूजी,
संासें थाम कर बैठना,
घड़ी की गति मति सुनना,
मन भन्ना जाना।
डर कैसे आता है-
दबे पांव,
या कि
डर क्या है बाबूजी,
संासें थाम कर बैठना,
घड़ी की गति मति सुनना,
मन भन्ना जाना।
डर कैसे आता है-
दबे पांव,
या कि
लाचार बचपन
सड़क किनारे लाचार बचपन
आँखों में लिए लाखों सवाल
घूरता रहा मेरे मुन्ने को
जो लिए था हाथ आइस क्रीम
और पहने था
आँखों में लिए लाखों सवाल
घूरता रहा मेरे मुन्ने को
जो लिए था हाथ आइस क्रीम
और पहने था
अपनी सोच बदल नहीं पाया
मैं अपनी सोच बदल नहीं पाया तेरे लिए ,
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में शिसक-शिसक के रोते हुए।
मैंने ..
तुझे माँ
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में शिसक-शिसक के रोते हुए।
मैंने ..
तुझे माँ
Aankhen-Gazel
Moti bhi aansu banke kabhi baha karte hain aankhon se.
Fauladon ke dil bhi mom banke pighal jate hain aankhon se.
mai samjha gagan ka chand jamee par mujhse milne aaya hai.
Kisi ko jhankte dekha jab khidki ki salakhon se.
iss gulistan ki kismat band talon me tadapti hai.
ulluon ki fauj baithi
Fauladon ke dil bhi mom banke pighal jate hain aankhon se.
mai samjha gagan ka chand jamee par mujhse milne aaya hai.
Kisi ko jhankte dekha jab khidki ki salakhon se.
iss gulistan ki kismat band talon me tadapti hai.
ulluon ki fauj baithi
Muktak
DRUPAD SUTA KI LAJ DUSHASAN LOOTTE RAHE.
KALIYUG KE MANMOHAM MOUN HO SOCHTE RAHE.
SAMAY KE PASE ULTE PAD GAYE,BEIMAN SINGHASAN PER CHAD GAYE,
BANWAS KA DANSH HAME BHOGNA THA BHOGTE
KALIYUG KE MANMOHAM MOUN HO SOCHTE RAHE.
SAMAY KE PASE ULTE PAD GAYE,BEIMAN SINGHASAN PER CHAD GAYE,
BANWAS KA DANSH HAME BHOGNA THA BHOGTE
अपनी सोच बदल नहीं पाया
मैं अपनी सोच बदल नहीं पाया तेरे लिए ,
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में शिसक-शिसक के रोते हुए।
मैंने ..
तुझे माँ
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में शिसक-शिसक के रोते हुए।
मैंने ..
तुझे माँ
भले लोगो का इस शहर में..........
भले लोगों का इस शहर में
कबसे आना जाना है?
सूनी सड़के, टूटी राहें
लगता सब विराना है
छुप जाते हैं चलते चलते
काली
कबसे आना जाना है?
सूनी सड़के, टूटी राहें
लगता सब विराना है
छुप जाते हैं चलते चलते
काली
स्वयं से छल न होगा
स्वयं से छल न होगा !
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर गर रोक ले तो
मन को
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर गर रोक ले तो
मन को
ओ! समय .........
ओ! समय
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
अपनी सोच बदल नहीं पाया
अपनीसोचबदलनहींपाया
मैं अपनी सोच बदल नहीं पाया तेरे लिए ,
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में शिसक-शिसक के रोते
जिंदगी के छंद
कविता व उपन्यास होती जिंदगी-
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
डन लड़कियों को जिनने जाना,महसूसा कभी न कभी ऐसी ही नजर
सच बताना बुद्ध-
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
मिलो- नमिलो हकीकत में तुम
मिलो न मिलो हकीकत में तुम, तो क्या गम है,
ख्वाबों का सहारा लेलेंगे .
किस्मत में नहीं किनारे अगर,
तेरी यादों
ख्वाबों का सहारा लेलेंगे .
किस्मत में नहीं किनारे अगर,
तेरी यादों
मिलो- नमिलो हकीकत में तुम
मिलो न मिलो हकीकत में तुम, तो क्या गम है,
ख्वाबों का सहारा लेलेंगे .
किस्मत में नहीं किनारे अगर,
तेरी
ख्वाबों का सहारा लेलेंगे .
किस्मत में नहीं किनारे अगर,
तेरी
बूढ़ा पेढ़
मेरी तो उम्र हो चुकी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी
बहशी दरिंदे
बहशी दरिंदे
समाज में मानव को क्या हो गया
कितना बहशी वो हो गया
डर उनसे कोसों दूर हो गया
लगता है पशु से भी बत्तर हो
समाज में मानव को क्या हो गया
कितना बहशी वो हो गया
डर उनसे कोसों दूर हो गया
लगता है पशु से भी बत्तर हो
ठिठुरन
ठिठुरन
सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी
सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती
ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता
तमाम गरम
सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी
सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती
ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता
तमाम गरम
नव बर्ष की लालिमा
नव वर्ष की लालिमा से
पल तो रुकता नहीं
समय का अंश जो ठहरा
हर पल हर छण नया एहसास देता
उन पलों के संग संग
अपनी सोच बदल नहीं पाया
अपनीसोचबदलनहीं पाया
मैं अपनी सोच बदल नहीं पाया तेरे लिए ,
तुझको देखा है मैने बंद कमरे में
चुने हुए हाइकु-1
चुने हुए हाइकु-1
1
जोगी वे पते
पेड़ों के घर छोड़
निकल पड़े ।
2
जपा कुसुम
खिले , दहके , झरे
तुम न फिरे
1
जोगी वे पते
पेड़ों के घर छोड़
निकल पड़े ।
2
जपा कुसुम
खिले , दहके , झरे
तुम न फिरे
सोमवार, 14 जनवरी 2013
बूढ़ा पेढ़
मेरी तो उम्र हो चुकी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी
नव बर्ष की लालिमा
नव वर्ष की लालिमा से
पल तो रुकता नहीं
समय का अंश जो ठहरा
हर पल हर छण नया एहसास देता
उन पलों के संग संग
बहशी दरिंदे
बहशी दरिंदे
समाज में मानव को क्या हो गया
कितना बहशी वो हो गया
डर उनसे कोसों दूर हो गया
लगता है पशु से भी बत्तर हो
समाज में मानव को क्या हो गया
कितना बहशी वो हो गया
डर उनसे कोसों दूर हो गया
लगता है पशु से भी बत्तर हो
ठिठुरन
ठिठुरन
सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी
सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती
ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता
तमाम गरम
सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी
सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती
ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता
तमाम गरम
उदास मत होना
कल न आ पाया तो उदास मत होना-
रोना भी मत,
मालूम है मुझे,
क्या मायने है मेरा होना तुम्हारे लिए,
पर अगर नहीं आ पाया कल,
तो
रोना भी मत,
मालूम है मुझे,
क्या मायने है मेरा होना तुम्हारे लिए,
पर अगर नहीं आ पाया कल,
तो
भटकन...
कल रात, कोई आह सी जल रही थी।
जैसे, कोई शम्मा सी पिघल रही थी।
कई मरासिम से जैसे छूट रहे थे।
कुछ अपने, अपनों से रूठ
जैसे, कोई शम्मा सी पिघल रही थी।
कई मरासिम से जैसे छूट रहे थे।
कुछ अपने, अपनों से रूठ
भेड़ और भेड़िए
भेड़ो ने भेड़िए चुने भेड़िए भेड़ो को ही चाप गये,
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
दोस्त या मसीहा
लो आ गया फिर से मौसम जश्ने दोस्ती का,
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
दोस्त या मसीहा
लो आ गया फिर से मौसम जश्ने दोस्ती का,
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
भटकन...
कल रात, कोई आह सी जल रही थी।
जैसे, कोई शम्मा सी पिघल रही थी।
कई मरासिम से जैसे छूट रहे थे।
कुछ अपने, अपनों से रूठ
जैसे, कोई शम्मा सी पिघल रही थी।
कई मरासिम से जैसे छूट रहे थे।
कुछ अपने, अपनों से रूठ
रविवार, 13 जनवरी 2013
स्वयं से छल न होगा
<em><strong>स्वयं से छल न होगा !</strong></em>
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर
ओ! समय .........
ओ! समय
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
ओ! समय .........
ओ! समय
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
ओ! समय के बदले चेहरे
क्रूरता में सना हुआ
लडा हर कौम को
ओ! दुर्भाग्य के जन्मदाता
भीड में तू चीरता चला
दरिंदगी
स्वयं से छल न होगा
<em><strong>स्वयं से छल न होगा !</strong></em>
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर
रीत को ही प्रीत कहना
क्या स्वयं से छल न होगा
मन में उठते उस बवंडर को
चाहकर
भले लोगो का इस शहर में..........
भले लोगों का इस शहर में
कबसे आना जाना है?
सूनी सड़के, टूटी राहें
लगता सब विराना है
छुप जाते हैं चलते चलते
काली
कबसे आना जाना है?
सूनी सड़के, टूटी राहें
लगता सब विराना है
छुप जाते हैं चलते चलते
काली
Gazel- Inqlab-POET-Prakash pandey
Kuch khat fate mile hai"n purani kitab me.
Kuch raj chupe huye hai"n waqt ki naqab me.
Mausam kharab hai ghar jake alav tapiye.
itni tapish kaha"n hai ab aftab me.
Pane ki khushi nahi ki na khone ka gam kiya.
zindgi na uljhi kabhi iss hisab me.
ek budhe admi ne bagawat ki mashal tham
Kuch raj chupe huye hai"n waqt ki naqab me.
Mausam kharab hai ghar jake alav tapiye.
itni tapish kaha"n hai ab aftab me.
Pane ki khushi nahi ki na khone ka gam kiya.
zindgi na uljhi kabhi iss hisab me.
ek budhe admi ne bagawat ki mashal tham
muktak-rachnakar--prakashpandey
jab bhi ye dil ghabrata hai.
koi sapno me aakar samjhata hai.
mera ye akelapan aksar mujhko,
geet koi de jata
koi sapno me aakar samjhata hai.
mera ye akelapan aksar mujhko,
geet koi de jata
शनिवार, 12 जनवरी 2013
धर्म और कर्म
भिष्मपितामहको ज्ञान था
पाण्डव पर अन्याय हुवा
पर कौरव के साथ रहना
भिष्मपितामह की विडम्बना थी
वहि
पाण्डव पर अन्याय हुवा
पर कौरव के साथ रहना
भिष्मपितामह की विडम्बना थी
वहि
वक्त
हरी के हात मे
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
वक्त
हरी के हात मे
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
हरि थी केला !
उस दीन के हात मे
इस दिन भी ठेला !
एक तरफ उँची इमारत
दुसरी तरफ है खोली !
या खुदा! ये कौन
हर कोई अपने हैं
हर कोई अपने हैं
अब केवल सपने हैं
दुःख सुख के साथी सब
गिनती में कितने हैं
झूठे हो याकि सच्चे
अजमाया किसने हैं
सीरत
अब केवल सपने हैं
दुःख सुख के साथी सब
गिनती में कितने हैं
झूठे हो याकि सच्चे
अजमाया किसने हैं
सीरत
Muktak 16/12/2012
1- Drupad-suta ki laj dushashan nochte rahe,
kaliyug ke manmohan moun ho sochte rahe.
samay ke pase ulte pad gaye, beieman singhasan per chad gaye,
banwas ka dansh bhogna tha hame, bhogte
kaliyug ke manmohan moun ho sochte rahe.
samay ke pase ulte pad gaye, beieman singhasan per chad gaye,
banwas ka dansh bhogna tha hame, bhogte
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
वे आँधियों में तनके खड़े हैं
के बारां से मुझको डरा मत
तेरे घर भी कच्चे घड़े हैं
सच
सुन ले पाकिस्तान
लेकर काफिला चला था
वतन की शान में तू लड़ने
अब अकेला ही चला है
जाँ लुटाके अपनी
दुश्मनों ने धोखे से शीश तेरा हर
वतन की शान में तू लड़ने
अब अकेला ही चला है
जाँ लुटाके अपनी
दुश्मनों ने धोखे से शीश तेरा हर
शुक्रवार, 11 जनवरी 2013
जिंदगी के छंद
कविता व उपन्यास होती जिंदगी-
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
जिंदगी के छंद
कविता व उपन्यास होती जिंदगी-
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
तो लगा लेते,
अनुप्रास,
उपमा,
श्लेष।
गढ़ लेते अपने पसंद के कोई और
पहली बार स्तब्ध नहीं हुयी है हवाएँ
हमारे साथ-
पहली बार स्तब्ध नहीं हुयी है हवाएँ
पहली बार भावुक नहीं हुआ है पूरा देश
पहली बार विवश नहीं दिखा है
पहली बार स्तब्ध नहीं हुयी है हवाएँ
पहली बार भावुक नहीं हुआ है पूरा देश
पहली बार विवश नहीं दिखा है
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
मेरे हम उम्र उसपार के दोस्त-
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
कोफ्त नहीं होता,
जब कोई ,
इल्म के नाम पर,
लेता है तालीम भारत विरोधी दस्ते में शामिल होने
नेता
“नेता”
वह देखो नेता महाराज आ रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता आसीस पा रहे हैं।
बाकी जो लोग दूर हैं खड़े । गाड़ियों
वह देखो नेता महाराज आ रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता आसीस पा रहे हैं।
बाकी जो लोग दूर हैं खड़े । गाड़ियों
देश के प्यारे अन्ना हजारे
अन्ना हजारे अन्ना हजारे
तुम हो सारे देश के प्यारे।।
जनलोकपाल बिल लाना ही होगा
जड़ से भ्रष्टाचार मिटाना ही
तुम हो सारे देश के प्यारे।।
जनलोकपाल बिल लाना ही होगा
जड़ से भ्रष्टाचार मिटाना ही
गुरुवार, 10 जनवरी 2013
AASHIKON SA MUSKARA KE DIL LAGANA JANIYE
AASHIKON SA MUSKARA KE DIL LAGANA JANIYE.
DIL AGAR ROYE TO FIR ANSU CHHIPANA JANIYE.
DEKHNE KI HO TAMANNA JINKO BRSO SE LIYE.
PHIR UNHI KO DEKH KE NAZARE JHUKANA JANIYE.
WO GALE KAISE LAGATE DARD E MAHABUB KA.
AUR KHUSIYO ME HI UNKE KHUS BATANA JANIYE.
SAHARAA ME BSTE HO
DIL AGAR ROYE TO FIR ANSU CHHIPANA JANIYE.
DEKHNE KI HO TAMANNA JINKO BRSO SE LIYE.
PHIR UNHI KO DEKH KE NAZARE JHUKANA JANIYE.
WO GALE KAISE LAGATE DARD E MAHABUB KA.
AUR KHUSIYO ME HI UNKE KHUS BATANA JANIYE.
SAHARAA ME BSTE HO
रुठते वो रहे, हम मनाते रहे
रूठते वो रहे, हम मनाते रहे।
और हर गम गले से लगाते रहे॥
वो शितम पर शितम हम पे ढाये मगर।
हर शितम सह के हम मुस्कराते
और हर गम गले से लगाते रहे॥
वो शितम पर शितम हम पे ढाये मगर।
हर शितम सह के हम मुस्कराते
डन लड़कियों को जिनने जाना,महसूसा कभी न कभी ऐसी ही नजर
सच बताना बुद्ध-
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
डन लड़कियों को जिनने जाना,महसूसा कभी न कभी ऐसी ही नजर
सच बताना बुद्ध-
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
प्यार यूं ही आता है,
जैसी आती है सर्दी,
जैसे उतरती है गर्मी
जैसे पकते हैं धान।
सच -सच बताना
INSTRUMENTAL-MARI MAHISAGAR NE ARE-DANDIA.
DEAR FRIENDS,
I PLAYED INSTRUMENTAL "MARI MAHISAGAR NE ARE-DANDIA." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .THE CHHAND SANG BY FOLK SINGER- (LOK GAYAK) SHRI KIRITKUMAR.
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
<a
I PLAYED INSTRUMENTAL "MARI MAHISAGAR NE ARE-DANDIA." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .THE CHHAND SANG BY FOLK SINGER- (LOK GAYAK) SHRI KIRITKUMAR.
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
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बुधवार, 9 जनवरी 2013
तुमसे कभी न मोहब्बत करेंगे !!
सूजी इन आँखों में आँसू, आज भी हैं !
वक़त से मिले जख्म, अब भी गहरे हैं !
होकर बेकसूर हम, कसूरवार बन गए,
देखने तक की
वक़त से मिले जख्म, अब भी गहरे हैं !
होकर बेकसूर हम, कसूरवार बन गए,
देखने तक की
मंगलवार, 8 जनवरी 2013
शादी के बाद II
शादी के दस साल बाद पति के विचार, पत्नी के लिये. जरा गौर फरमायेः-
परी के जैसी लाया था - अब देखो उसका पारा
कैटरीना
परी के जैसी लाया था - अब देखो उसका पारा
कैटरीना
धर्म और कर्म
धर्म और कर्म
भिष्मपितामहको ज्ञान था
पाण्डव पर अन्याय हुवा
पर कौरव के साथ रहना
भिष्मपितामह की विडम्बना
भिष्मपितामहको ज्ञान था
पाण्डव पर अन्याय हुवा
पर कौरव के साथ रहना
भिष्मपितामह की विडम्बना
करो भोर का अभिनन्दन
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं
करो भोर का अभिनन्दन
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं
करो भोर का अभिनन्दन
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन
धूप बिटिया( हाइकु)
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
जले अलाव
फ़रार हुई धूप
काँपती छाँव ।
2
पकती चाय
बिखरती खुशबू
लहके आँच
1
जले अलाव
फ़रार हुई धूप
काँपती छाँव ।
2
पकती चाय
बिखरती खुशबू
लहके आँच
धूप बिटिया( हाइकु)
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
जले अलाव
फ़रार हुई धूप
काँपती छाँव ।
2
पकती चाय
बिखरती खुशबू
लहके आँच
1
जले अलाव
फ़रार हुई धूप
काँपती छाँव ।
2
पकती चाय
बिखरती खुशबू
लहके आँच
28-ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है [ शायर सलीम रज़ा रीवा म-प्र-]
09981728222= ग़ज़ल =
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
28-ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है [ शायर सलीम रज़ा रीवा म-प्र-]
09981728222= ग़ज़ल =
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
संघर्ष
होकर सवार इस जीवन रुपी नौका में ,
कर रहा था इंतज़ार दुसरे छोर का ,
भटक कर मार्ग अपनी मंजिल से ,
कोस रहा था उन
कर रहा था इंतज़ार दुसरे छोर का ,
भटक कर मार्ग अपनी मंजिल से ,
कोस रहा था उन
दोस्त या मसीहा
लो आ गया फिर से मौसम जश्ने दोस्ती का,
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
दोस्त या मसीहा
लो आ गया फिर से मौसम जश्ने दोस्ती का,
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
अब दोस्तों की महेफ़िल मे हर शॅक्स को, बन ठन के जाना है,
पढ़ने है कसीदे यारों की
भेड़ और भेडिये
भेड़ो ने भेड़िए चुने भेड़िए भेड़ो को ही चाप गये,
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
सोमवार, 7 जनवरी 2013
मैं अनलहक हूँ...
मैं,
अनलहक* हूँ...
सच तो यही है,
ना, मानने की बात है।
दुनियां,
इसी बात से खफा होती है,
और कभी,
इसी बात को स्वीकार करती
अनलहक* हूँ...
सच तो यही है,
ना, मानने की बात है।
दुनियां,
इसी बात से खफा होती है,
और कभी,
इसी बात को स्वीकार करती
साधु
साधु
ढूढ़ रहे हो किसे तुम
साधु
भटक रहे हो
निकल के घर से
जैसे बीच समंदर मे
प्यासे माझी
जल जल देखे
जल को
ढूढ़ रहे हो किसे तुम
साधु
भटक रहे हो
निकल के घर से
जैसे बीच समंदर मे
प्यासे माझी
जल जल देखे
जल को
soch
Soch he kya? Haquikat ya ek khayal?
Dimag ka ye fasana kabhi na hoga bayan
Sachchi he,juthi he,apni he,parai he,
Ya phir har kadam pe beimani he?
Chand ki tarha sheetal he ya sagar ki tarha gehri he?
Hum soch me rehte he ya soch hamare andar rehti he?
Behti he hawa ke sath,rehti he fiza ke
Dimag ka ye fasana kabhi na hoga bayan
Sachchi he,juthi he,apni he,parai he,
Ya phir har kadam pe beimani he?
Chand ki tarha sheetal he ya sagar ki tarha gehri he?
Hum soch me rehte he ya soch hamare andar rehti he?
Behti he hawa ke sath,rehti he fiza ke
raaste aur manzil
kaha se chale the zindgi me,kaha aa gaye chalte chalte,
jin manzilo ko apna samjha tha wahi badal gayi haste haste.
apni parayi har raah par chal ke dekha hai humne,
wo manzil milti hi nahi jiski aaas he na jane kabse.
intzaar bhi kiya muskurate aur aakho me aasu bhi liye,
par jab kuch
jin manzilo ko apna samjha tha wahi badal gayi haste haste.
apni parayi har raah par chal ke dekha hai humne,
wo manzil milti hi nahi jiski aaas he na jane kabse.
intzaar bhi kiya muskurate aur aakho me aasu bhi liye,
par jab kuch
Neta
“नेता”
वह देखो नेता महाराज आ रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता आसीस पा रहे हैं।
बाकी जो लोग दूर हैं खड़े । गाड़ियों से
वह देखो नेता महाराज आ रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता आसीस पा रहे हैं।
बाकी जो लोग दूर हैं खड़े । गाड़ियों से
कमजर्फ लम्हा
बड़ा ही खौफनाक निकला
मेरी नादानी का लम्हा
कमजर्फ लम्हा बन गया पल में ही
मेरी लाचारी का लम्हा
उस पल की कथा कैसे
मेरी नादानी का लम्हा
कमजर्फ लम्हा बन गया पल में ही
मेरी लाचारी का लम्हा
उस पल की कथा कैसे
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
कहने को तो बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ,
फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
एक अरसा बीत गया,
उन
फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
एक अरसा बीत गया,
उन
INSTRUMENTAL-JAB DEEP JALE AANA.
DEAR FRIENDS,
I PLAYED INSTRUMENTAL "JAB DEEP JALE AANA." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
<a href="http://www.4shared.com/mp3/EOBC5J0n/INSTRUMENTAL-JAB_DEEP_JALE_AAN.html"
I PLAYED INSTRUMENTAL "JAB DEEP JALE AANA." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
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"हर चाहत हो जाये पूरी ये जरुरी तो नहीं"
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
"हर चाहत हो जाये पूरी ये जरुरी तो नहीं"
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
"हर चाहत हो जाये पूरी ये जरुरी तो नहीं"
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
कह्ते है लोग अक्सर मत हो तुम परेशान कभी ...
हर चीज को तुम हल्के मे लो सभी
रविवार, 6 जनवरी 2013
Wo hansi Safar
suhane mausam me wo hansi sfar hoga..
Kisi se pyar khauf na kisi se dr hoga...
Kahan hm ja rahe kisi ko na btayenge ...
Mujhe malum hai sabko ye khabar hoga..
Aadmi chaar , pair aath ka masin hogi...
Saamane aasamaan to pichhe wo jamin hogi...
Jisi pe char roj hans ke hm gujare
Kisi se pyar khauf na kisi se dr hoga...
Kahan hm ja rahe kisi ko na btayenge ...
Mujhe malum hai sabko ye khabar hoga..
Aadmi chaar , pair aath ka masin hogi...
Saamane aasamaan to pichhe wo jamin hogi...
Jisi pe char roj hans ke hm gujare
Wo hansi Safar
suhane mausam me wo hansi sfar hoga..
Kisi se pyar khauf na kisi se dr hoga...
Kahan hm ja rahe kisi ko na btayenge ...
Mujhe malum hai sabko ye khabar hoga..
Aadmi chaar , pair aath ka masin hogi...
Saamane aasamaan to pichhe wo jamin hogi...
Jisi pe char roj hans ke hm gujare
Kisi se pyar khauf na kisi se dr hoga...
Kahan hm ja rahe kisi ko na btayenge ...
Mujhe malum hai sabko ye khabar hoga..
Aadmi chaar , pair aath ka masin hogi...
Saamane aasamaan to pichhe wo jamin hogi...
Jisi pe char roj hans ke hm gujare
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
GURU NANAK ENGLISH SCHOOL- A PLACE WHERE MY SOUL RESIDES...:)
कहने को तो बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ,
फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती
कहने को तो बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ,
फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें
आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें
कोई उनसे कह दे, हमे भूल जाए
वादे भुला दे, कसम तोड़ दे वो
हालत पे अपनी, हमे छोड़ दे
"अपराजिता"
...mujhe pata hai mere dard se tujhe khushi milti hai hamesha ,
par tera koi prahar mujhe dara sakta nahin,
main ladi hun aage bhi ladungi tere har atyachar se ,
tera ye vahashipan mujhe kinchit dara sakta nahin,
yaad rakh o! purush tu meri hi aulad hai,
main jhelti hun gar tujhe to
par tera koi prahar mujhe dara sakta nahin,
main ladi hun aage bhi ladungi tere har atyachar se ,
tera ye vahashipan mujhe kinchit dara sakta nahin,
yaad rakh o! purush tu meri hi aulad hai,
main jhelti hun gar tujhe to
शनिवार, 5 जनवरी 2013
Aarju thi teri bahon me dum nikle
Aarju thi teri bahon me dum nikle,
kasur tera nahi badnaseeb hum nikle.
jahan bhi jaye khush rahe tu sada,
dil se meri bus yahi dua nikle.
mere hothon ki hasi teri honthon se nikle,
tere gham ka dariya meri ankhon se nikle.
ye zindagi tumhe hasati hue nikle,
agar chahe toh hume rulate hue
kasur tera nahi badnaseeb hum nikle.
jahan bhi jaye khush rahe tu sada,
dil se meri bus yahi dua nikle.
mere hothon ki hasi teri honthon se nikle,
tere gham ka dariya meri ankhon se nikle.
ye zindagi tumhe hasati hue nikle,
agar chahe toh hume rulate hue
INSTRUMENTAL-Aansu Bhari Hain Yeh Jivan Ki Raahein.
DEAR FRIENDS,
I PLAYED INSTRUMENTAL "Aansu Bhari Hain Yeh Jivan Ki Raahein." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
<a href="http://www.4shared.com/mp3/iH6NF8Sx/INSTRUMENTAL-ANSU_BHARI_HAI_JI.html"
I PLAYED INSTRUMENTAL "Aansu Bhari Hain Yeh Jivan Ki Raahein." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
<a href="http://www.4shared.com/mp3/iH6NF8Sx/INSTRUMENTAL-ANSU_BHARI_HAI_JI.html"
घडी कि सुई
घडी कि सुई
वसन्त ऋतु आइ
कोकिल ने कुका
पतझड से बगिया
उजड़ना न छोड़ा
शराब पिया और
शराबी हुवा मै
खुद शराब ने
वसन्त ऋतु आइ
कोकिल ने कुका
पतझड से बगिया
उजड़ना न छोड़ा
शराब पिया और
शराबी हुवा मै
खुद शराब ने
अलबिदा
अलबिदा
बुढे बृक्ष की कमजोर डाल पर
फड फडा रहे है
पिले पिले पत्ते
अब तो ढल गया है सुरज
न जाने कब्
खो जाएगी यह
बुढे बृक्ष की कमजोर डाल पर
फड फडा रहे है
पिले पिले पत्ते
अब तो ढल गया है सुरज
न जाने कब्
खो जाएगी यह
शुक्रवार, 4 जनवरी 2013
गैरों से क्या शिकवा करें !!
बेवफाई के इस दौर में,
वफ़ा की उम्मीद किस से करें !
जब प्यार का रंग वादियों में घुल गया हो तो,
दिलनशी इस एहसास से, खुद
वफ़ा की उम्मीद किस से करें !
जब प्यार का रंग वादियों में घुल गया हो तो,
दिलनशी इस एहसास से, खुद
भेड़ और भेड़िए
भेड़ो ने भेड़िए चुने भेड़िए भेड़ो को ही चाप गये,
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
तपस्या का ताप
तपस्या का ताप”-----कश्मीर सिह
दुख की घड़ी में
कहीं से जब
सुख नजर आने लगा।
ऐसा लगा जैसे मृत्यु के बाद
नया जन्म
दुख की घड़ी में
कहीं से जब
सुख नजर आने लगा।
ऐसा लगा जैसे मृत्यु के बाद
नया जन्म
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
तुम क्या गये
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
udas shamm
तुम क्या गये
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
udas shamm
तुम क्या गये
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
तुम क्या गए के मैं आधा चला गया
बीमार रह गया तिमार चला गया
उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे
राज़
जब तुम न थे चाहत तुम्हारी थी
तुम्हरे बाद
जब तुम न थे चाहत तुम्हारी थी
हर एक सिम्त आहट तुम्हारी थी
चोंक तो गया था दरे दिल पे उसे देख कर
बदलते
जब तुम न थे चाहत तुम्हारी थी
हर एक सिम्त आहट तुम्हारी थी
चोंक तो गया था दरे दिल पे उसे देख कर
बदलते
Bhed or Bhedie
भेड़ो ने भेड़िए चुने भेड़िए भेड़ो को ही चाप गये,
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
चपी भेड़े अपनी औलादो को दे भेड़ियों का ही अभिशाप गये,
राष्ट्र
Tapasiya ka tap
तपस्या का ताप”-----कश्मीर सिह
दुख की घड़ी में
कहीं से जब
सुख नजर आने लगा।
ऐसा लगा जैसे मृत्यु के बाद
नया जन्म
दुख की घड़ी में
कहीं से जब
सुख नजर आने लगा।
ऐसा लगा जैसे मृत्यु के बाद
नया जन्म
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही है
क्रुध विधाता
पिछला जन्म
क्या था
याद नहीं
किसी को
अगला जन्म
क्या होगा
नहीं पता
किसी को
इस जन्म में
जो है बेसुध
सच
क्या था
याद नहीं
किसी को
अगला जन्म
क्या होगा
नहीं पता
किसी को
इस जन्म में
जो है बेसुध
सच
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
एक पल
तुम बिन हर एक पल उदास है।
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा,
मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां,
मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे,
आँखों में बिखरे
मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां,
मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे,
आँखों में बिखरे
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
बुलबुला
जिज्ञासु मानव सृष्टि के रहस्य सुलझाता रहा
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा,
मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां,
मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे,
आँखों में बिखरे
मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां,
मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे,
आँखों में बिखरे
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
एक पल
तुम बिन हर एक पल उदास है।
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
भ्रम
काले बादल
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
आसमान में
कितनी ऊँचाई पर
आभासित होतें हैं,किन्तु
आभास सच नही होता है
बादलों से बरसता पानी
हमें
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
उस मोड़ पर
रात भर फैला रहा सन्नाटा,
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था सूर्य
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था सूर्य
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
बुलबुला
जिज्ञासु मानव सृष्टि के रहस्य सुलझाता रहा
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
उस मोड़ पर
रात भर फैला रहा सन्नाटा,
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था सूर्य
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था सूर्य
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
बुलबुला
जिज्ञासु मानव सृष्टि के रहस्य सुलझाता रहा
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों के
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों
गुरुवार, 3 जनवरी 2013
फ़क्त लम्हों की कमी है!!
कहते तो बहुत कुछ हैं,
फिर भी खामोश लब हैं!
मुस्कुराते तो बहुत हैं,
फिर भी आँखे ये नम हैं!
जीने की तमन्ना तो
फिर भी खामोश लब हैं!
मुस्कुराते तो बहुत हैं,
फिर भी आँखे ये नम हैं!
जीने की तमन्ना तो
उसे मर्दानगी कहते हैं !
कभी मुझे भारत माता कह,
मेरा स्वाभिमान बढ़ाते थे !
आज मेरी इज्ज़त से खेल,
अपनी हवस मिटाते हैं !
कभी मेरी लहू का
मेरा स्वाभिमान बढ़ाते थे !
आज मेरी इज्ज़त से खेल,
अपनी हवस मिटाते हैं !
कभी मेरी लहू का
30-ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में वही
30-ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
ज़िन्दगी के दिन सुहाने ग़म के खाने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए
आज भी उनकी अदायों में
कल वो दौर भी आएगा...
कुछ गम जो लगते गहरे हैं,
उनसे हो गए रिश्ते सुनहरे हैं !
जो जख्म कभी, जख्म से लगे ही नहीं,
वो ही दर्द के एक मात्र कारण
उनसे हो गए रिश्ते सुनहरे हैं !
जो जख्म कभी, जख्म से लगे ही नहीं,
वो ही दर्द के एक मात्र कारण
बुलबुला
जिज्ञासु मानव सृष्टि के रहस्य सुलझाता रहा
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं
मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं
मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
उस मोड़ पर
रात भर फैला रहा सन्नाटा,
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
निष्ठुर हवायें
चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों
आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।
धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,
पत्थरों
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
एक पल
तुम बिन हर एक पल उदास है।
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
एक पल
तुम बिन हर एक पल उदास है।
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न कहा,
गैर
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
एक पल
तुम बिन हर एक पल उदास है।
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न
रोशनी भी मिली तो कुछ पल की,
अब तो रास्ते में सिर्फ रात है।
मैंने तुमको कभी कुछ न
मेरा अकेलापन
मेरा अकेलापन-
कभी बी तन्हा नहीं छोड़ता है मुझे मेरा अकेलापन,
रात के अंदेरे में साथ देता है मुझे मेरा
कभी बी तन्हा नहीं छोड़ता है मुझे मेरा अकेलापन,
रात के अंदेरे में साथ देता है मुझे मेरा
10-जाने कैसे होंगे आंसू बह्ते है तो बह्ने दो
जाने कैसे होंगे आंसू बह्ते है तो बह्ने दो !!
भूली बिसरी बात पुरानी कह्ते है तो कह्ने दो 11
इ्श्क मे तेरे सुध
भूली बिसरी बात पुरानी कह्ते है तो कह्ने दो 11
इ्श्क मे तेरे सुध
बुधवार, 2 जनवरी 2013
स्नेह-डोर
बदलों के पार बसाने संसार,
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
तुम मुझे क्यों बुलाते हो?
तारों के मंडप में किरणें के तार,
स्वागत में मेरे तुम क्यों
मेरा अकेलापन
Mera akelapan-
kabhi be tanha chod ta nahi ha muje mera akelapan,
raat ke andere mein saath deta muje mera akelapan,
dunya bool chue hai jise lakein yaad aaj be hai muje mere akelapan,
dil pe chont lage jab dard ke saath mila muje mere akelapan,
kabhi ankhoo to kabhi saaso mein
kabhi
kabhi be tanha chod ta nahi ha muje mera akelapan,
raat ke andere mein saath deta muje mera akelapan,
dunya bool chue hai jise lakein yaad aaj be hai muje mere akelapan,
dil pe chont lage jab dard ke saath mila muje mere akelapan,
kabhi ankhoo to kabhi saaso mein
kabhi
काश कोई दिल के करीब हुआ करती
काश कोई दिल के करीब हुआ करती,
एक हंसी मुझको भी नसीब हुआ करती,
तडपता नही मै उजालो से डरकर,
एक हंसी मुझको भी नसीब हुआ करती,
तडपता नही मै उजालो से डरकर,
इच्छा
न हम अपनी इच्छा से यहां इस दुनियां में आए हैं
न हम अपनी मर्जी से इस दुनियां से लौट पायेंगे
फ़िर क्यों इच्छाओं के
न हम अपनी मर्जी से इस दुनियां से लौट पायेंगे
फ़िर क्यों इच्छाओं के
सूरज की किरणें
शिखावों के श्ह्रुंग से निकलकर सूरज की किरणें
वादियों मै क्रीडा करती है,
नीरसता के तरुण-तरोवर इन पोखरों मै खेला
वादियों मै क्रीडा करती है,
नीरसता के तरुण-तरोवर इन पोखरों मै खेला
INSTRUMENTAL-YE NAYAN DARE DARE.
DEAR FRIENDS,
I PLAYED INSTRUMENTAL "INSTRUMENTAL-YE NAYAN DARE DARE." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
DOWNLOAD FULL LENGTH-MP3 AUDIO.
<a href="http://www.4shared.com/mp3/GfP21agD/INSTRUMENTAL-YE_NAYN_DARE-DARE.html"
I PLAYED INSTRUMENTAL "INSTRUMENTAL-YE NAYAN DARE DARE." ON MY ELE. HAWAIIAN GUITAR .
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मंगलवार, 1 जनवरी 2013
ichha
इच्छा“ न हम अपनी इच्छा से यहां इस दुनियां में आए हैं न हम अपनी मर्जी से इस दुनियां से लौट पायेंगे फ़िर क्यों इच्छाओं
नब बर्ष 2013
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी
नब बर्ष 2013
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी
29-लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
29-लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
29-लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
लगते हो क्यूं ख़फ़ा ख़फ़ा ऐसा हुआ है क्या ]
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
ऐ ना खुदा बता दे हमारी ख़ता है क्या ]
इस चांदनी में शबनमी आँखे है किस लिए
28-ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है
09981728222= ग़ज़ल =
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =
यहाँ पर
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