।।गजल।।शाजिसे मेरे लिए भी।।
प्यार में देखा ठहर, थी रंजिसे मेरे लिये भी ।।
गम वही,तन्हा वही,थी बंदिशे मेरे लिये भी ।।1।।
आंशुओं के भाव से बिक रहे थे दिल वहा पर ।।
हर ख़ुशी को बेचने की थी ख्वाहिसे मेरे लिये भी ।।2।।
जुर्म मेरा कुछ नही था पर सजा सब एक सी थी ।
तब हो गयी थी दर्द की फरमाइसे मेरे लिए भी ।।3।।
है वहा के लोग सब इश्क के मारे मुअक्किल ।।
लूटने की कोसिसे थी हो रही मेरे लिए भी।। 4।।
मन्नतो की वजह से बच निकल पाया वहा से ।।
बन रही थी बेमुरौवत शाजिसे मेरे लिए भी ।।5।।
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