जरुरत है ज़माने की तस्वीर बदलने की
अब बारी है नारी के दुर्गा बनने की ,
कब तक दांव पर लगेगी पांचाल की राजकुमारी
कब तक अग्नि परीक्षा देगी लव कुश की महतारी ,
अन्याय को किस्मत मान कर सहती रही है
किस्मत बदलने का यह समय सही है
दुर्गा भी तू ही है काली भी तू ही है !
कब तक सहेगी नारी तू अत्याचार
अब तू भी कर अन्याय पर वार ,
जुर्म की आंधी में बह जाना नहीं है
अस्तित्व को अपने खो देना नहीं है ,
ज़माने को देना पैगाम यही है
दुर्गा भी तू ही है काली भी तू ही है !
ममता से पहचान है तेरी , कमजोरी न बनने देना
सबला बन , अबला खुद को ना होने देना ,
तेरी दुनिया को तबाह कर दे किसी में वो आब नहीं है
दुर्गा भी तू ही है काली भी तू ही है !
मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015
शक्तिरुपा
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