तूने इतना दिया है ईश्वर
लौटा भी न पाऊँ में मरकर !!
में मुझमें बहुत सी कमियां देखता हूँ ,
हर बदलते मौसम की नर्मियाँ -गर्मियां देखता हूँ !!
तू कैसा एक सा सदैव है ,
जानता हूँ मैं मानव तू देव है !!
पर इतनी गलतियां कोई कैसे माफ़ कर सकता है ,
जिसमे है इतनी शक्तियाँ की पल में दुनिया साफ़ कर सकता है !!
तू इतना बलशाली है फिर भी शांत है
मैं इतना खाली हूँ और अशांत हूँ !!
तूने इतना दिया है ईश्वर
लौटा भी न पाऊँ में मरकर !!
कभी सोचता हूँ क्यों तुझे मुझसे इतना प्यार है
ऐसा क्या करता हूँ मैं , जिसके लिए इतना दुलार है !!
नियमित रूप से तुझे हाथ भी नहीं जोड़ पाता हूँ
चलते भागते तेरा दिया भोजन खाता हूँ !!
शरीर की तो दुर्गति ही समझो
नश्वर है यह मान के बैठा हूँ
आगुन्तक का है यह , वही संभाले इसे , यह ठाने बैठा हूँ !!
जो मन में आये करता हूँ
जो मूह में आये कहता हूँ !!
तूने इतना दिया है ईश्वर
लौटा भी न पाऊँ में मरकर !!
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