हमे तुमसे प्रीत कितनी अब कैसे तुम्हे बताऊँ !
लब खोलू मोहे आवत लाज कैसे तुम्हे जताऊं !!
तुझ पे मैंने वार दिया अपना जीवन सारा
मुझ में अब मै नहीं सब कुछ अपना वारा
देख हालत मेरी अब जोगन कहे जग सारा
कोई जतन काम न आये कैसे तुझको पाऊँ————(१)
हमे तुमसे प्रीत कितनी अब कैसे तुम्हे बताऊँ !
लब खोलू मोहे आवत लाज कैसे तुम्हे जताऊं !!
विरह आग में जिया जले, नैनो से बरसे नीर
दुनियावाले ताने कसते, लफ्ज बने अब तीर
कब समझोगे मेरी हालत कुछतो करो विचार
दीदार को तरसते नैना मै कैसे नयन मिलाऊँ ………..(२)
हमे तुमसे प्रीत कितनी अब कैसे तुम्हे बताऊँ !
लब खोलू मोहे आवत लाज कैसे तुम्हे जताऊं !!
हरपल लगता बरसो बीते जैसे तेरे इन्तजार में
कब आकर सुध लोगे प्रभु कब से बैठी द्वार पे
सुन लो गिरधर,मेरे विष्णु,अब तुम हो मेरे राम
मन की भाषा तुम न समझे कैसे तुम्हे समझाऊँ——(३)
हमे तुमसे प्रीत कितनी अब कैसे तुम्हे बताऊँ !
लब खोलू मोहे आवत लाज कैसे तुम्हे जताऊं !!
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डी. के. निवातियाँ ___________@@@
Read Complete Poem/Kavya Here !! प्रेम गीत !!
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