26/04/2015
ऐ! बाले! त्वं कथमट्टाले केशप्रशाधयितुं तल्लीना।
गृहम् विशालं तव हे सुमुखे! किं त्वं कुलं कुटुम्बम् हीना।
कस्मै अलक संजालं क्षेपस्यसि वीथी हिंस्र जन्तु आकीर्णा।
रूपाजीवा इव संलग्ना त्वं प्रतिभासि सुरुचि अकुलीना।।1।।
केन प्रशंसा वाञ्छसि भामिनि चंचल नयन प्रसारिणी दीना।
यौवन भार गर्विता बाले! पीनस्तनी गौरा कटि क्षीणा।
ऐ!मृगनयनी मृगयारता काम शर क्षेपण कला प्रवीना।
सुभग़े सुग्रीवेलोल लोचने पीन पयोधरे वसन विहीना।।2।।
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