आखिर बेटियां हीं क्यों हो जाती हैं अपनों के लिए पराई ….
नियति ने भी कैसा ये अजीब नियम बनाया ,
सब बेटियों को उनके घर से पराया करवाया ,
आधी उम्र उनकी माँ की गोद में सुलाया ,
बाकी आधी उम्र अंजान घर में बसेरा दिलाया |
क्यों लिखी रहती हैं उनकी किस्मत में ऐसी जुदाई ?
आखिर बेटियां हीं क्यों हो जाती हैं अपनों के लिए पराई?
उनकी किस्मत भी क्या अजीब खेल खेलती है,
जन्म कहीं और तो मरना कहीं और होता है ,
जन्म कोई और देता है तो सेवा कोई और लेता है ,
पढ़ाता कोई और है तो कमाई पर हक़ किसी और का होता है|
क्यों लिखी रहती हैं उनकी किस्मत में ऐसी जुदाई ?
आखिर बेटियां हीं क्यों हो जाती हैं अपनों के लिए पराई?
कैसी है ये परंपरा और कैसी है ये रीति,
कभी किसी ने सोचा है उस माँ पर क्या है बीतती,
बीस -पच्चीस साल तक कलेजे से है वो लगाती ,
एक नियम की वजह से वों दोनों एक दूसरे से दूर हैं हो जातीं|
क्यों लिखी रहती हैं उनकी किस्मत में ऐसी जुदाई ?
आखिर बेटियां हीं क्यों हो जाती हैं अपनों के लिए पराई?
कहीं होती है उनकी पूजा तो कहीं होता है उनपर अत्याचार ,
कहीं वों बनती हैं दुर्गा तो कहीं हो जाती हैं वों लाचार,
मिलती है कहीं उन्हें अच्छाई तो कहीं मिलता है दरिंदों का बाजार ,
कहीं प्यार हीं प्यार बरसता है तो कहीं सुनने पड़ते हैं ताने हज़ार |
क्यों लिखी रहती हैं उनकी किस्मत में ऐसी जुदाई ?
आखिर बेटियां हीं क्यों हो जाती हैं अपनों के लिए पराई?
(अंकिता आशू)
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