कब तक सजाओगे सपने मिलन के ! कैसे रह पाओगे हमारी दुनिया छोड़कर ! जन्नत के सुकून से भरी मेरी आगोश ! डूब जाएंगे इन आँखों में सदा के लिए ! कब तक जिओगे यू घुट-घुटकर जमाने में !
छोड़ ख्वाहिशो का दामन चले आओ !!
तोड़कर तन्हाई का दामन चले आओ !!
बहके कदमो से सही, तुम चले आओ !!
बहाकर अश्को का समुन्द्र चले आओ !!
लांघकर बाधा शर्म ओ हया की चले आओ !!
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( मूल रचना – डी. के निवातियाँ )
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