वो लाखों शहीदो पर लगे
तिरंगे याद आते है
उग्रवाद की चढ़ते भेट
रणबांकुरे जान गवांते है
कैसे हैं गुमराह ये आसिम
जैसे ये इनका मुल्क नहीं
जिसमे खाते उसी में छेद
क्या ये नेकी पर जुल्म नहीं
फतवे जारी करते हैं
एहतमाम पर भारी पड़ते हैं
ये अनपढ़ और बेगैरत
सियाशी सवारी करते हैं
बाढ़ में करते हैं मदद
कभी भूकम्प में बचाते हैं
क्या ख़ता जवानो की
जो पत्थर इनसे खाते हैं
रात रातभर मुखातिब
सीने पर गोली खाते हैं
सेवा, चिकित्सा,आसरा देते
धन भी इनपर लुटाते हैं
आशुफ़्ता वो पाक मुल्क
जो दहशतगर्दी की खाता हैं
सीमा पार कायरता करता
मुहाजिर अपनों को बताता हैं
इस नफरत के आलम में
निर्दोष हैं जान गवां रहे
कुचलिये इनका सिर जो
जो अलगाववाद भड़का रहे
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