करता खुद से नादानी
फिर दोष रब पर लगाया है !
पाया तूने फल कर्मो का
फिर देख क्यों घबराया है !!
भूल हए हम अपनी करनी,
बेदर्द उसको बताया है !
एक वही कर्ता धर्ता आज
अपराध उसपे लगाया है !!
भोविलास में लिप्त हुए,
देवो को मन से मिटाया है !
घमंड किया था जिसके बूते
आज नीचे उसी ने गिराया है !!
धर्म कर्म को भूल गए हम,
आज मंदिरो में रास रचाया है !
बनकर व्यभिचारी हमने,
खुद को अनिष्ट बनाया है !!
तन, मन धन सब उसका था
फिर सब क्यों अपना बताया है !
सब कुछ था जब उसका,
फिर हमने अपना क्या गंवाया है !!
( मूल रचना – डी. के. निवातियाँ )
Read Complete Poem/Kavya Here हमने अपना क्या गंवाया है
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