भरोसा
अभी जबकि नहीं आयी हो तुम तुम्हारे आने की आहट भर से महकने लगा है घर जाते जवाते अपनी नाजुक नरम हथेलियों से तुमने घर नहीं भरोसा सौंपा था जिसे मैनें रखा है कायम। चाहता हूँ बचा रहे दुनिया में भी चुटकी भर नमक गंगाधर ढोके
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