सोमवार, 13 अप्रैल 2015

मेघ अब बस आस तुम्हारी है।

पहले हँस कर बरसे थे तुम
कितने घर जल राख हुए।
आज रो रहे तब भी आंसू में
सपने भीग कर खाक हुए।

वक्त से जब तुम आते थे
आँखों की चमक बढ़ जाती थी
दिल में कई उम्मीद लिये
हरियाली गीत सुनाती थी।

वेवक्त तुम्हारे आने से
बोझिल कितने जज्बात हुए।
फसल मिल गई माटी में
बंज़र धरती से हालात हुए।

कर्ज के कदमों में किसान है
सांसे भी दम तोड़ रही।
कहर तुम्हारा कब कम होगा
साथ ज़िन्दगी छोड़ रही।

आएगा परिवर्तन जल्द ही
ये राजनीति के वादे हैं।
सब बेकार की बाते हैं
नेताजी के कमजोर इरादे हैं।

मेघ अब बस आस तुम्हारी है
असहाय पर रहम खाओ।
कितने सपने निर्वस्त्र हुए हैं
तुम भी तो शर्मसार हो जाओ।

वैभव”विशेष”

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