ग़ज़ल .मुझे भी डर नही लगता
R.K.MISHRA
अब तेरे बिन घर मेरा ये घर नही लगता .
अब अँधेरो से मुझे भी डर नही लगता .
आयेगी तू लौट कर मुझको अभी भी है यकीं .
बेबसी तब तक रहेगी पर नही लगता .
रूप तेरा आ ही जाता है अँधेरी रात में .
चाँद सा चेहरा वो संगमरमर नही लगता .
तू जो थी तो जिंदगी भी चल रही थी साथ में .
अब जी सकूँगा एक पल अक्सर नही लगता .
उस नदी के पास जो तू एक दिन मुझसे मिली थी .
ढूढ़ता हूँ दरबदर पर वो दर नही लगता .
इन नतीज़ो की न माने तो मेरे इस दिल की सुन ले .
ये धड़कता है अभी पथ्थर नही लगता .
एक पौधा सींचता हूँ मैं मेरे इन आंशुओं से .
लाख़ चाहू पर अभी तो फर नही लगता .
ढह ही जायेंगे घरौंदे अश्क़ की बरसात से .
बच सकेंगे प्यार के मंज़र नही लगता .
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