उच्च वर्ग
उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या,
भूकम्प आये धरती हिले
मिट्टी बन मिल जाये मिट्टी
सोने की फिर बिसात है क्या।
इतना होने पर भी तुम
क्यों सोते हो नभ में चढ़कर
आंधी चले सहारा हिले
ढह जाये स्वप्नमयी महल
थोथे बांस की नींव है क्या,
उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या।
सर्दी-गर्मी का आभास नही
सब कुछ तेरे पास सही
विद्युत कटे, तारें टुटे
तब हो जाये हाल बुरा
मिथ्या चीजों का विश्वास है क्या,
उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या।
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