ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।।
मैं एक दिया था मिटा दिया गया हूँ .
उनकी ख़ैरात था लुटा दिया गया हूँ .
हौसला रखता था ये दिल मुहब्बत का .
मैं एक मुकाम था मिटा दिया गया हूँ .
अब वही लिखता हूँ तन्हा के आंशुओं से .
मुहब्बत में जो भी सिखा दिया गया हूँ
तब तो मेरे नाम की तारीफ होती थी .
अब बदनाम इशारों से दिखा दिया गया हूँ .
दर व् दर की ठोकरों से आज साहिलों पर .
बेकार आंशुओं सा गिरा दिया गया हूँ .
अब चर्चाओं में मेरा जिक्र नही होता .
पुरानी यादों सा मैं भुला दिया गया हूँ .
मुहब्बत की एक लम्बी दास्ताँ था मैं .
आज बेनाम ख़त सा जला दिया गया हूँ .
मिलता था बेकरारियो में भरोशा और हौंसला .
रुसवाइयों में शराब ऐ गम पिला दिया गया हूँ .
सकून आ गया जब दर्द बढ़ गया हद से .
अब ग़मो के मंजर में डुबो दिया गया हूँ .
रकमिश” मेरी जिंदगी मुहब्बत ऐ मिसाल थी .
अब बदनाम और बुझदिल बता दिया गया हूँ .
—-R.K.MISHRA
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