किस्मत की लकीरो का, खेल अमीरो गरीबो का, जाने क्यों तुम घबरा रहे हो किस बात से मात खा रहे हो गम जरूर कोई जिसको छुपा रहो हो बे-बात जो तुम इतना मुस्कुरा रहे हो !!
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! ——::: डी. के. निवातियाँ :::——
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