शराब
एक दिन अंगूर की बेटी ने
मुझसे कुछ यूं कहा
एक बार, सिर्फ एक बार
मुझे भी चखकर देख जरा
तेरी जिन्दगी मैं ना संवार दूं
तो मुझे कहना
तुझे धरती से उठाकर
आसमान पर ना बिठा दूं
तो मुझे कहना
तुझे कुर्सी से उठाकर
सिंहासन पर ना बिठा दूं
तो मुझे कहना
तु बस मुझे ही चाहेगा
हर जगह दिखूंगी मैं तुझे
तु लुट कर भी
पागल हो कर भी
चाहेगा सिर्फ मुझे
आंखे तेरी नशीली होंगी
हर जगह पायेगा मुझे
हर दुःख-दर्द से निजात पाकर
राहत महसूस होगी तुझे
भटकता फिरता है यूं ज्यों तु
मंजिल पर पहुंच जायेगा
गमों का काला बादल भी
श्रावण में बदल जायेगा
जब तु मेरे दर पर
मेरे घर मधुशाला आयेगा।
बनाकर दूंगी मैं प्याला
फिर तु हाला कहलायेगा।
-ः0ः-
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