अलंकृत दोहे ……
कल कल करलव करती कावेरी बहती करके कलनाद !
शीला सहित अगड बगड, नहाते उतरे जीवन नैया पार !!
घन घन करती घटा चली,गरजे घट में उमड़े घनघोर !
अंतर्मन में संशय उठते, घबराहट में करत अति शोर !!
पत्ता पत्ता पेड़ से पड़ा पेट बल, गिर मिटटी में हुआ भोर विभोर
पवन पुरवाई पुरजोर चली, वनस्पति कांपे होकर झकझोर !!
घट में घटती घनी घटना, घट विच घट में ही घटती रही !
विषमताओं में उलझे प्राण, उम्र जीवन पर्यन्त कटती रही !!
मन मयूर मांगे मेघ मलहार, नृत्य मग्न हो लगावत आस !
कबहुँ आवे मोरे सावरिया, कितने बरसो में नही आये पास !!
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!!________डी. के. निवातियाँ _____!!
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