ऐ “विकास”ना तू शायर हैँ और नाही कलमकार ||
शब्दो से खिलवाड़ करता तू है उनका गुनाहगार ||
एक दिन तू इन शब्दो की पहेली मे ऐसा जकड़ा जायेगा || कोशिशे तेरी नाक़ाम होगी सारी पर तू ना बच पायेगा ||
इन शब्दो की लड़ीयों से तू कभी भी पिछा छूड़ा ना पयेँगा|| भीड़ भरी बारात संग यही शब्द तुझे श्मशान तक पहुचायेगा॥
\\\\\विकास/////
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