मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सूखा हुआ गुलाब

आज जब पन्नों
को पलटते हुए
एक सूखा हुआ
गुलाब देखा।

तो सहसा ही होंठो पर
मुस्कानबिखर गई
ये वही पहला
गुलाब था।

जो तुमने मुझे
इजहार में दिया था।
सच कहूँ उसी पल
मैंने ज़िन्दगी को जिया था।

पन्नों पर पंखुड़ियों
के जो निशान हैं।
तुम्हारे बेइंतिहा
प्यार की पहचान हैं।

वो तड़प प्यार की
वो कशिश।
बेचैनी का आलम
वो जूनूनी ख्वाहिश

वो दिन भर एक
झलक को मचलना।
वो सुबह के इंतजार में
करवटें बदलना।

वो छुप-छुप के तुम्हें
ख़त लिखना।
वो छत पे चोरी
से मिलना।

मेरे लिए कुछ न कुछ
बना के लाना
वो अपने हाथों
से खिलाना।

ज़माने के तुम हर
सितम सह गए।
और आज मेरे
हमसफ़र हो गए।

ऐ मेरे सफ़र
मेरी मंज़िल
आओ फिर से
जियें वही पल।

तुम गुलाब मैं
किताब हो जाऊं।
बंद हो कर बस
तुम में खो जाऊं।

प्रेम की बारिश में यूँ
मुझे सराबोर कर दो।
जुदा न कर सके कोई
पन्नों में वो रंग भर दो।

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