बुधवार, 1 अप्रैल 2015

विदाई।।

कोई लौटा दे मुझको बचपन फिर से गोद में सो लूंगी।
माटी के गुड्डे-गुड़ियों से जीभर के आज मैं खेलूंगी।
जहां के हर कोने में मेरी यादें गीत सुनाती हैं।
दूर हुई जो घर से मैं बन के एहसास में बोलूंगी।

कभी झगड़ के रूठ मैं जाऊं कभी मान भी जाती थी।
कभी जो जिद पे मैं आ जाऊं सर पे आकाश उठाती थी।
गालों में रख लेती थी मैं शिकवे शिकायत की गठरी।
शाम को पापा से लिपट कर मैं सारी बात बताती थी।

एक रिश्ते ने हाथ है थामा फिर भी क्यों आँखे नम हैं।
खुश हो जाऊं या रो लूँ मैं दिल का अजीब आलम है।
देखकर आँखों की नमी सबकी आँखे भर आईं हैं।
होठों पर मुस्कान खिली और दिल में जुदाई का गम है।

मन में हैं सवाल कई जबाब मैं मांगू तो किससे।
नए रिश्तों में दरारों के मैंने सुने हैं कई किस्से।
वो बाबुल सा प्यार करेगा या मुझपे रौब जमायेगा?
फूल मिलेंगे या काटें ,क्या आएगा मेरे हिस्से।

बिठा के मुझको काँधे पर दुनिया की सैर कराई है।
होते जो बीमार कभी हम आँखों में रात बिताई है।
बाबुल तुम उदास मत होना दूर मेरे जाने के बाद।
जीवन की सच्चाई यही है कि बेटी होती पराई है।

सोच रही हूँ ऐ मालिक ये तूने कैसी रीत बनाई है।
अपना ही घर रोशन करना अपनों से लेकर विदाई है।
आँगन बदला मांबाप हैं बदले,बदला आशियाना है।
किसी का साथ मिला उम्र भर किसी से लम्बी जुदाई है।
वैभव”विशेष”

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