मत पूछो कैसे बरस हैं बीते
राधा बिन क्या श्याम रहे?
अपनी ही प्रतिध्वनियों में
हम सुनकर तेरा नाम रहे।
सावन का था मस्त माह
हम प्यासे व्याकुल तरसे थे।
सच कहते हैं नैन हमारे
याद में तेरी बरसे थे।
थककर पलकों में बन्द किया
संग करते हम विश्राम रहे।
अपनी ही प्रतिध्वनियों में
हम सुनकर तेरा नाम रहे।
जब दिनकर का प्रणय निवेदन
धरा ने सहर्ष स्वीकार किया।
तेरी अनुभूति की छाया को
हमने फिर भुजहार किया।
कभी हृदय को धीर धराया
कभी स्वयं को थाम रहे।
अपनी ही प्रतिध्वनियों में
हम सुनकर तेरा नाम रहे।
पुनः प्रेम का मिलन हुआ
अब न परदेश मैं जाऊँगा।
रह गए अधूरे तुमसे किये
वो सारे वचन निभाऊंगा।
तेरी प्रीत का मुझपे न
बिसर गए, इल्जाम रहे।
अपनी ही प्रतिध्वनियों में
हम सुनकर तेरा नाम रहे।
वैभव”विशेष”
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