लाख जलाओ घी के दीपक जग के लोग कहते हर कोई कहता आज जिस बेटे को दुआओ से मांगता बचपन से बूढ़े तक
रोशनी के लिए
बिन बेटी के घर में
उजाला कहा होता है !!
बेटा “घर का चिराग” होता है
फिर बेटी की विदाई से
आँगन सुना क्यों होता है !!
बेटा बेटी है एक समान होता है
फिर बेटी के जन्म पर
बेटे सा उतसव क्यों नही होता है !!
वो हर दौलत का हकदार होता है !
बोझ समझता था जिस बेटी को
मरने पर निस्वार्थ मन उसी का रोता है !!
जन्म से लेकर मरण तक
किसी न किसी रूप में
साथ निभाती है बस बेटियां !!
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डी. के. निवातियाँ _!!!!
शनिवार, 18 अप्रैल 2015
बेटियां
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