बदलता रूप बन जाऊं
दया प्रतिरूप बन जाऊं।
ठिठुरते जिस्म की खातिर
कभी मैं धूप बन जाऊं।
अमन बहुरूप बन जाऊं
हंसू ,बहरूप बन जाऊं।
प्यासे की प्यास बुझ जाए
कभी मैं कूप बन जाऊं।
शब्द अभिरूप बन जाऊं
उत्तर प्रारूप बन जाऊं।
तिरंगा जिस पे लहराये
अडिग स्तूप बन जाऊं।
शक्ति स्वरुप बन जाऊं
साहस अधिरूप बन जाऊं।
वाणी क्या जो प्रेम न जाने
इससे अच्छा मैं मूक बन जाऊं।
वैभव”विशेष”
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