शनिवार, 4 अप्रैल 2015

मुक्तक

ऐसे तो हम बेपरवाह नही जो बेवजह मन भटकता है
है जरूर कुछ बात तुममें जो दिल तुम पर अटकता है

ऐसी कोई दिल्ल्गी तो नही की हमने कभी तेरे संग में
न जाने क्यों तेरे संग वक़्त बिताने को मन तरसता है

कितनी बेरहमी से ये दुपटटा तेरे बदन पर सिमटता है
जैसे चन्दन के पेड़ से कोई जहरीला अजगर लिपटता है

इस दुनिया में लोग बने बहरूपिये रहते पहनकर नकाब !
कैसे समझपाओगे यंहा कौन अच्छा, और कौन खराब !!

न करना हमदर्दी ऐ दोस्त हमपर, हमे अब डर लगता है !
दर्द उन्ही से मिलते है, जिन पर इंसान भरोसा करता है !!
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डी. के. निवातियाँ _______!!

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