पथिक अकेला जीवन पथ पर
नजर गड़ाये बैठा हू |
न आश कोई , न पास कोई,
पर आश लगाये बैठा हू |
इस पथ पर आगे बढ़ना है ,
हर कठिनाई से लड़ना है |
हर दरिया पार उतरना है ,
हर हिमगिरि पर मुझे चढ़ना है |
मेड-मेड और डगर-डगर ,
हर नदी-नदी हर नहर-नहर |
पदचिन्ह छोड़ने को आतुर,
हर गली-गाँव हर नगर-शहर |
एक कदम बढ़ा एक पाठ पढ़ा,
कुछ मिथक तोड़ नया लक्ष्य गढ़ा|
कुछ मंजिल पीछे छूट गये ,
कुछ आगे आना बाकी है |
मैं प्रकृति की गीली मिटटी हू,
जीवन कुम्भकार की चाकी है||
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