मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

अंतर-अगन

अंतर अगन जलाए रखो,
खुद को खुद ही जलाए रखो,
मैं को, मेरे को, मुझसे और मुझको,
सबको दूर करो तपन से,
अहम लपट लगाए रखो।
मन में रखो ज्ञान आतिशी,
और हविष्य अज्ञानों का,
तन फूंकणी से हवा लगाके,
इस अग्नि को ज़ोर पकड़ा दो।
शेष रहे ना कोई किल्विष,
मन हो सोना तन की कसौटी,
खूब जला औ तपाए जा,
अंतर अगन जलाए जा,
खुद को खुद ही जलाए जा।।

Manoj Charan “Kumar”
Mob. 9414582964

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