मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

मेरे सपनों की रेल

मेरे कुछ सपने है,
मेरी प्यारी रेल के,
जुड़े हुए हैं जो जीवन,
के खेल से।
रेल मेरी शुरू होती है,
बचपन के प्यारे खेल से,
छोटे-छोटे स्टेशन से,
छुटपन के साथी छूटे,
पटरी के सहारे भागते,
पेड़ों की तरह कुछ रिश्ते टूटे।
भीड़ भरे स्टेशन सा,
जीवन भरा पड़ा जालों से,
फाटक बंद पड़े हैं सारे,
कैसे बचें कोयले कालों से।
पर जीवन की रेल का सपना,
जैसा भी है अपना है।
पकड़ रखूँ मैं स्टेशन को,
रिश्तों का इंजन चालू रखूँ,
बोगी हो परिवार हमारा,
और यात्रा लंबी हो,
मेरे सपनों की रेल चले जब,
साथ मेरे सारे मित्र कुटुम्बी हो।।

Manoj Charan “Kumar”
Mob. 9414582964

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