शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

मधुबन सा

हे गिरिधर हे मनोहर
मेरे द्वारे भी आ जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

भोर से पहले जहां पर
लोग उठ जाते है
उठाते है वजन कन्धों पर
खेतों में हल चलाते है

थके हारों को मुरलीधर
मीठा गीत सुना जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

आज भी बच्चे जोहड़ में
जहाँ कूद कूदकर नहाते है
तेरे मंदिर में आकर प्रभु
सब ही शीश झुकाते है

भोले चेहरों पर फिर से
एक उम्मीद जगा जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

दूध सी उजली है
मेरे गाँव की तरुणाई
हया में लिपटी आँखे
पलकों में शर्म समाई

इन नटखट आँखों का
फिर से काजल चुरा जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

सुबह सुबह सुनती है
आवाज़ दूध बिलौने की
गुमसुम सी रमती दादी
बालगोपालों के रोने की

इस मधुर करतल में
अपना राग मिला जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

माखन रबड़ी खीर मलाई
सब उसे मिल जाएगा
आबरू समझे औरों की
तुझ सा प्यार लुटायेगा

हे मधुकर फिर से वो
मधु हमे पिला जाओ
मधुबन सा है मेरा गावं
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

मोर पपीहा और गिलहरी
सब सावन में गायेगे
पहाड़ वाले मंदिर में मोहन
तुमसे मिलने आएंगे

हे मोरध्वज रखने वाले
मान मेरा बढ़ा जाओ
निर्मल सा है मेरा गाँव
आकर पुण्य बना जाओ

हे नीलाम्बर हे नटवर
एक तू ही दिल के पास है
मुंडेर पर जो जलता है दीपक
वो सब लोगों की आश है

हे ग्वालों के रमईया
गाँव की गाय चरा जाओ
मधुबन सा है मेरा गाँव
वहां बैठ बंसी बजा जाओ

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