शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

मेरा किसान क्यूँ दब गया

वो हालात के दबाव में दब गया,
मेरा किसान कर्ज के बोझ में दब गया।
ऐसे हालात आखिर पैदा ही क्यों होते हैं,
जो पैदा कर रहे वो ही जीवन खोते क्यों हैं।।

ऐ वतन शर्म आ रही मुझको,
आखिर हम सारे कैसे जीवित है।
जिंदगी बोने वाले तो मर रहे,
हम सारे भोगी जीवित हैं।।

धैर्य की कमी नहीं किसान में,
वो फसलों को संतान सी पाले हैं।
कुछ तो गलत हो रहा यहां,
वरना किसान कहाँ मरने वाले हैं।।

उन्हें फसल की कीमत न मिलती,
सभी बिचौलिए हड़प कर जाते हैं।
तभी तो ऐसे कठिन समय में,
मेरे किसान ही मारे जाते हैं।।

किसान सब कुछ हमें है देता,
साथ में क्या वो रखता है।
अन्न भी देता, धान भी देता,
देखो प्राण भी नहीं रखता है।।

यदि अभी ये नहीं रुका तो,
देश पर संकट आएगा।।
अन्न संंकट इस देश में होगा,
फिर कोई नहीं जी पाएगा।।

अगर मंहगाई है यहाँ तो,
फिर किसान ही क्यूं गरीब रहे,
बीच के सारे राजा बन गए,
वे ही फिर क्यूँ रंक रहे।

कुछ अगर करना है तो,
किसानों को अमीर करो भाई।
निकाल फैंकों बीच के लोगों को,
अन्नदाताओं की मदद करो भाई।।

गुजारिश मेरी है राजतंत्र से,
कुछ उनके लिए करो अभी।
कोई भी किसान न सोचे,
प्राण तजने से लाभ कोई।।

सभी से अनुरोध है कि वो अपने आसपास के क्षेत्र में प्रभावित लोगों का होंसला बनाएं रखें।
अरुण अग्रवाल

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