गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

भगवान भी बंट गया।

जमीं भी बंट गई आसमां भी बंट गया।
दौलत की चाह में इन्सां भी बंट गया।

जिसमें गुजरा था बचपन साथ खेलकर
रिश्तों की दीवार का मकां भी बंट गया।

सुबह नहाकर माँ जिसमें जल चढ़ाती थीं
आज माँ तुलसी का अंगना भी बंट गया।

बाँट न पाये जहां हम चन्द खुशियों को।
मजहब की लड़ाई में ये जहाँ भी बंट गया।

जो सिखाता है सदा हमें एकता का पाठ।
वो बाइबिल,गीता और कुरान भी बंट गया।

जिसने बांटा नहीं कभी इंसान का लहू।
आज इंसान के हाथों भगवान भी बंट गया।
वैभव”विशेष”

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