ये राहें भी तुम्हारी हैं ये मन्ज़िल भी तुम्हारी है।
है अगर हौंसला दिल में,महफ़िल भी तुम्हारी है।
ठहरे हुए पानी में पत्थर से लहर दूर तक जाती
ठोकरों से सम्हल गए तो मुश्किल भी तुम्हारी है।
चेहरों पर यकीन तो शायद धोखे की निशानी है।
दिल में झांक सकें तो नज़रें काबिल भी तुम्हारी हैं।
अगर सच्चाई से जो मुँह चुरा कर भागते फिरते।
तो जीवन जीने की हर चाह स्वप्निल ही तुम्हारी है।
वैभव”विशेष”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें