बुधवार, 15 अप्रैल 2015

बना है वो भी दीवाना

बना है वो भी दीवाना
मै इतना मान लूँ शागिर्द

कभी देखकर हँसता है
कभी बचकर निकलता है
गुजर जाऊं बिना देखे, तो आसिम
दीदार को मेरे फिर पलटता है

कहता भी नहीं कातिल
ले आँखे नींद से बोझिल
कागज़ के टुकड़ों पर
मेरा क्यूँ नाम लिखता है

बना है वो भी दीवाना
मै इतना मान लूँ शागिर्द
तो सब झूठ है ये जो
मुझ पर ज़माना कहता है

गुजरते है काफिले बड़ी
बदगुमनियां लेकर
क्यूँ मेरा दिल मचलता है
जब वो बगल से गुज़रता है

वो फिदरत से है कातिल
या कुछ और कारण है
नई नई खुशबुएँ लेकर
रोज़ औजार बदलता है

बना है वो भी दीवाना
मै इतना मान लूँ शागिर्द
गिरियां वो भी तड़पेगा
जो रोज़ दुआएं करता है

फिर भी इल्म नहीं मुझको
चाहतों का उसकी
वो दिल्लगी करता है या
सचमुच मुझपे मरता है

बना है वो भी दीवाना
मै इतना मान लूँ शागिर्द
वो पत्थर है जो रोज
मेरी राहों से गुजरता है

यूं ही सजता है
सजदे मे मेरा हाकिम
जो रोज दर्दों की मेरे
दवायें करता है

बना है वो भी दीवाना
मै इतना मान लूँ शागिर्द
मुझसे आकर वो कह दे
जो मेरी तस्वीर से कहता है

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