बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्रायच्चित

कभी था जिसने, तुझे चलना सिखाया l
कभी था जिसने , तुझे कंधे पर बिठाया l
जिसने तेरी मुस्कान को ,अपना धेय्य बनाया l
फिर आज क्यों तूने उसे ही बेगाना बनाया ?

जिसने गीले में सो , तुझे सूखे में सुलाया l
जिसने खुद भूखे रहकर ,तुझे खाना खिलाया l
जिसने तेरी ख्वाइशों को ,पंख लगाये l
फिर आज कैसे, तुम उन्हें भूल पाये ?

ईश्वर के बाद, जिसका आता है नाम l
हमारी करता है, जो दुनिया से पहचान l
जिसने अपना जीवन तुम्हारे लिए बिताया l
उनके लिए तू पल-भर भी ना निकाल पाया ?

तुने नौ महीने , जिसके गर्भ में बिताये l
उन मुश्किलों में भी , वो मुस्कुराती जाये l
जो बिन बोले , तेरे मन को समझ जाये l
आज क्यों तू ही,उसके मन को ठेस पहुचाये ?

एक दिन तू भी इस स्थिति में आयेगा l
जब तेरा अपना ही तुझे समझ नहीं पायेगा l
जिस दिन तू अपनी,गलतियों को जान लेगा l
ईश्वर भी तेरा जीवन, खुशियों से भर देगा ll

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