बुधवार, 15 अप्रैल 2015

सबका पेट भरता हूँ

मै हूँ किसान देश का
हाशिये से कहानी लिखता हूँ
आजिज मै कमर झुकाये
रोज खेतों में मिलता हूँ

अफ़सुर्दा भूख छिपाए
जीने की कोशिश की करता हूँ
भरता हूँ भण्डार बहुत, खुद
फांको से पेट भरता हूँ

खबर आलिम की देखकर
उम्मीद दिल में आती है
बिजली कहीं पर भी गिरे
मेरा ही घर जलाती है

आदिल नहीं लगता यहाँ
रहनुमा मेरा मुझे
अमलन कितना भी कमाऊं
गुजारा ही नहीं चलता है

जिन्दगियां मै देने वाला
रोज चौराहों पर मरता हूँ
अन्नदाता हूँ देश का
सबका पेट भरता हूँ

शब्द -१ अफ़सुर्दा =उदाश 2आदिल=नेक

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