रविवार, 12 अप्रैल 2015

गजल

शिकायत अब करें किससे खुदा ही बेरहम निकला |
मुझे जन्नत मिली लेकिन यहाँ पर भी तो गम निकला ||

निगाहों से हुआ है क़त्ल मेरा देखिये यारों |
जो तहकीकात करता है वही कातिल सनम निकला ||

जहन्नुम का कोई गम हाय मुझसे मिलने आया था |
सुनाया हम ने गम को गम तो गम का भी था दम निकला ||

जहां में है बहुत गम ये कहानी तो पुरानी है |
मेरे गम की रवानी से जहां का गम भी कम निकला ||

जमीं या आसमां याफिर जहन्नुम याकि जन्नत हो |
सुकूं मुझको नहीं मिलाता मुकद्दर ही गरम निकला ||

सनम तो मौत देते है मगर मैं मर न पाऊंगा ||
जहर मिलता नहीं असली जहर में भी भरम निकला ||

ख़ुशी के भी समन्दर में मथानी हम ने डाली थी |
समन्दर पीर ही निकली नहीं रहमोकरम निकला ||

किसी शातिर शिकारी ने लिया दिल को निशाने पर ||
छुरी दिल पर चलाकरके वो सत्यम सुन्दरम निकला ||

गजल या शायरी या गीत शिव को हैं नहीं भाते |
जिगर की पीर का देखो अहम् या है वहम निकला ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548

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