मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

लड़की कोई

एक मासूम सी लड़की
सुबह सुबह घर से निकली
लेकर रंगो की फुहार
आँखों में खिलता संसार

जा पहुंची सुनसान नगर में
जहाँ ना था कोई डगर में
कुछ घबराई सी चल दी
अँधेरे की काली चादर में

दिल में तो अरमान बहुत थे
उड़ने को आशमान बहुत थे
मगर वो फसी एक दिन
जानवर से इन्शान बहुत थे

बेबश सी वो निर्दोष
हाथों को फड़फड़ाती रही
और बेशर्मों की फ़ौज़
खड़ी खड़ी मुस्कुराती रही

आवारा इन जानवरों को
आख़िर पकड़ेगा कौन
इस सामाजिक कुण्ठा का
जुल्म भुगतेगा कौन

खुद करते है जुल्म
खुद ही नजारा करते है
लूट कर मासूम को
उसको आवारा कहते है

दुनिया सिर्फ देखती है
घरो में अपने दुबकी हुई
कैसे लगती है
लड़की कोई लूटी-पिटी

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