एक मासूम सी लड़की
सुबह सुबह घर से निकली
लेकर रंगो की फुहार
आँखों में खिलता संसार
जा पहुंची सुनसान नगर में
जहाँ ना था कोई डगर में
कुछ घबराई सी चल दी
अँधेरे की काली चादर में
दिल में तो अरमान बहुत थे
उड़ने को आशमान बहुत थे
मगर वो फसी एक दिन
जानवर से इन्शान बहुत थे
बेबश सी वो निर्दोष
हाथों को फड़फड़ाती रही
और बेशर्मों की फ़ौज़
खड़ी खड़ी मुस्कुराती रही
आवारा इन जानवरों को
आख़िर पकड़ेगा कौन
इस सामाजिक कुण्ठा का
जुल्म भुगतेगा कौन
खुद करते है जुल्म
खुद ही नजारा करते है
लूट कर मासूम को
उसको आवारा कहते है
दुनिया सिर्फ देखती है
घरो में अपने दुबकी हुई
कैसे लगती है
लड़की कोई लूटी-पिटी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें