गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

राजनीति के जंगल में दंगल और मंगल

देश की राजधानी के चुनाव में नए और पुराने सुरमा दंगल लड़ रहे है |
मुद्दों के मैदान में अपने अपने मंगल गीत गाते है |
दोस्त भी अब दुश्मन बन चुके है और एक दूसरो को नसीहत का उपदेश देते है |
चेहरे पर चेहरे लगा कर अपने असली चेहरे छुपाते है |
राजनीति के जंगल में अपने अपने दंगल की ताल ठोक रहे है |
पर जनता बेबस और परेशान है ,अच्छे दिनों के आने का इंतजार कर रही है |
अच्छे दिनों की आश में जनता अभी भी आने का इंतजार कर रही है|
पर राजनीति के जंगल में सब कुछ संभव है |

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here राजनीति के जंगल में दंगल और मंगल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें