hindi sahitya
सोमवार, 25 मई 2015
चमचागीरी-58
चमचों को देख कर हम दुखी होते हैं;
चमचे वह फसल काट लेते हैं जो हम बोते हैं.
Read Complete Poem/Kavya Here
चमचागीरी-58
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें