- चलो उतार देते है ख्वाहिश तेरी कोरे कागजो में !
मुझे मालुम, तू खोजे खुद को मेरे अल्फाजो में !!तमन्ना हाल-ऐ-दिल जो छुपाये बैठे हो कब से !
अश्को से लिख देंगे जो बयान न हो लफ्जो में !!माना के पसंद नही तुमको अपना हमराज कोई
फिर क्यों ढूंढे, ये तेरी नजर उनको रहगुजारो मेंएक हरफ से कर दे तेरे ख्यालातों को बे नकाब !
संजो के रक्खा है जिन्हे तुमने दिल में नाजो से !!करने से इंकार भला हकीकत कहाँ छुप पाती है !
Read Complete Poem/Kavya Here अल्फाजो में... ( ग़ज़ल )
वो कौन शै है जो दौड़े लहू के नाम से नब्जो में !!
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( डी. के. निवातियाँ )
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