रविवार, 17 मई 2015

मिलना

उस तरह
नहीं’ मिलना
जिस तरह
समुद्र से
मिलती है
नदी
तुम
मिलना
उस तरह
जिस तरह
दरवाजे के
दो पट
मिलते हैं
परस्पर

गंगाधर

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