यादो के बादल बनकर
बरबस आँखों से
बरस कर चले जाते हो …!!
छाया है नशा
कुछ इस कदर चाहतो को
आते हो नींद बनकर
ख्वाबो में चुप से मिल चले जाते हो…!!
रहते हो जुल्फों में
उलझे उलझे कुछ इस तरह
जब भी चाहा संवारू
टूट टूट कर बिखर जाते हो…!!
आदत है संग चलना
घूमते हो सदा परछाई बनकर
जब भी चाहा देखना
उजाले में, जाने कहा छुप जाते हो…!!
रहते हो साफगोई
बड़े पाक दिल नजर आते हो
फूल हो छुई मुई
हाथ लगाते ही मुरझा जाते हो…!!
सिमटा है जैसे
तुममे पूर्ण सृष्टि का भान
सर्दी, वर्षा, धुप बन,
आकर हर मौसम में सताते हो….!!
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( डी. के निवातियाँ )
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