कैसे कहू आँखों का धोखा
जब मैंने सजीव चित्रण में देखा है
अगर हो सके तो तू भी देख
दुनिया का वो रूप जो आज मैंने देखा है…आज करते है बाते बड़ी बड़ी
कहते है बिना फिलटर किया पानी सूट नहीं करता
बचपन में हमने उनको
गाँव के पोखर के जल से प्यास बुझाते देखा है !!आज एयर कंडीसन बंगलो में
बैठी नारी आराम फरमाते गर्मी की दुहाई देती है
उसी ज्येष्ठ की तपती दुपहरी में
एक अबला को अनाज के दाने बटोरते देखा है !!जब सज धज रही थी सब नारी
अपने श्रृंगार गृह में करवाचौथ मनाने को
एक दीन दुर्बल नारी को
मैंने किसी की इमारत में ईटे ढोते देखा है !!एक नारी बनी मालकिन
पैर पसार फूलो की सेजो पर सोती है
यथा स्थल सेवा में
संग चार छह को चाकरी करते देखा है !!दिखावे की ऐसी बयार चली
पूरब का पूर्ण ज्ञान नही पश्चिम की गाथा गाते है
हिंदी भाषा जिन्हे आता नही
आज शहर में उसको मैंने अग्रेजी में बतियाते देखा है !!कैसे कहू आँखों का धोखा
जब मैंने सजीव चित्रण में देखा है
अगर हो सके तो तू भी देख
दुनिया का वो रूप जो आज मैंने देखा है…डी. के. निवातियाँ __________@@@
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