मंगलवार, 26 मई 2015

भरम....

    1. कभी कभी लगता,
      जैसे ये मौसम कितना प्यारा है !
      अहसाह होता जैसे,
      ये हवाये भी करती कुछ इशारा है !!

      अब कौन समझेगा
      मतलबी दुनिया में जज्जबातो को
      कितनी शिद्दत से
      किसी ने तुमको दिल से पुकारा है !!

      खामियां मुझमे लाख सही,
      पर मुझमे अभी अक्स दीखता वफ़ा का है !
      न कर अलग मुझे खुद से,
      जब मैंने खुद को तेरे कदमो में वारा है !!

      कदम बढ़ाना क्या,
      तेरी यादो के दहलीज़ की और अब !
      जब हर घडी,
      आँखों में असर रहता नमी का है !!

      क्या करे चाहत किसी की,
      अब खुद पर हसीं के शिवा बचा क्या है !
      कब तक रक्खु भरम,
      की बाद मिलन के उसने मुझे पुकारा है !!
      !
      !
      !
      ( डी. के. निवातियाँ )

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