मुझ पे वो कितना मरती है
बुनती हर ख्वाब निश दिन
भरोसे मेरे जिन्दा रहती है
आखिर वो कौन है ….!!
रोज़ शाम करे इन्तजार
डयोढ़ी पर खड़ी होती है
अब आ रहे होंगे शायद
मन ही मन वो सोंचती है
आखिर वो कौन है ….!!
करती है मांगे नाना प्रकार
कभी हँसती, कभी रूठती है
करती है परवाह बाद माँ के
दुआओ में मेरी ख़ुशी मांगती है
आखिर वो कौन है ….!!
मालुम है मुझे और उसे भी
उम्र सारी न साथ गुजरनी है
पर जबतक संग एक दूजे के
जिंदगी जन्नत से प्यारी है !!
आखिर वो कौन है ….!!
थके हारे जब घर लौटता हूँ
मेरी बाहो में वो सिमट जाती है
भूल जाता हूँ उस क्षण दुनिया को
सारे जहां की खुशियाँ मिल जाती है !!
आखिर वो कौन है ….!!
रात दिन जिसके ख्वाबो को
पूरा करने में जीवन बिताता हूँ
कैसे रह पाउँगा उसके बिना
जिससे अपना घर रोशन पाता हूँ !!
जी रहा हूँ दिन रात डर डर के
सहमे से खुशियाँ मनाता हूँ
मान-सम्मान मेरा सब कुछ
उसके दम पे शीश उठाता हूँ !!
बना रहे मेरा विश्वाश
गर जीवन में सफलता पाती
सब से कह सकूंगा मै भी
बेटे से प्यारी मेरी बेटी है
फूलो जैसे उसको संवारा
आँगन सदा जो महकाती है
अनमोल रत्न मेरे जीवन का
वो मेरे घर की अपनी बेटी है !!
वो मेरे घर की अपनी बेटी है !!
वो मेरे घर की अपनी बेटी है !!
( डी. के निवातियाँ )
Read Complete Poem/Kavya Here आखिर वो कौन है ....!! ( बेटी )
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