बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

"रूप" मोहब्बत का ......... (ग़ज़ल)

किसी ने “विष कहा,किसी ने “मधु” कहा
कोई समझ नहीं पाता “स्वाद” मोहब्बत का !!

किसी ने “दर्द” कहा, किसी ने “मर्म” कहा
कोई समझ ना पाया “असर” मोहब्बत का !!

किसी ने “गम” कहा, किसी ने “ख़ुशी” का दामन
कोई समझ न पाया “मनोभाव” मोहब्बत का !!

किसी ने “मिलन” कहा, किसी ने “जुदाई” कहा
किसी की समझ न आया “रिश्ता” मोहब्बत का !!

किसी ने “जिंदगी” कहा, किसी ने “मौत” करार दिया
कभी समझा न आया “धर्म” असल “रूप” मोहब्बत का !!
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(( डी. के. निवातियाँ ))

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