गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

ग़ज़ल कौन कहता ............ (ग़ज़ल)

शुक्र अदा करो खुदा का,जो दुआओ में हम मिले
वरना ये तीर से चुभते लफ्ज भला कौन सहता !!

कुछ तो इनायत बख्शी होगी खुदा ने मोहब्बत में !
वरना दुनिया में दिल के दर्द ख़ुशी से कौन सहता !!

शौक रखता है हर कोई महफिले सजाने का !
देता न यार गर धोखा, यूँ तनहा कौन रहता !!

मिल जाती अगर मंजिल, मोहब्बत में सभी को !
रात के अंधेरो में, दर्द भरी ग़ज़ल कौन कहता !!

कुछ भी तो नही मेरे दामन में तुझे देने की लिए !
अगर होता मेरे बस में “धर्म” ये ज़माना तेरे कदमो में होता !!

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[[________डी. के. निवातियाँ _______]]

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