वो जो चांद चमक रहा दूधिया
अपना विरोध करेगा आज
फूट बिखरेगा अंगार बन कर
वह पृथ्वी के मस्तक का साज
मौन रहा वह सारे हादसे भर
मानव घातकता का निर्वाद साक्षी
पहुंच रहा अब उसकी ओर वह
विषाक्त मुखौटों में छिपा आत्म भक्छी
निचोड़ कर नींव अपने यथार्थ की
उगल कर विष की आग
जली प्रकृति जो माँ हमारी
हमारे अस्तित्व की बुनियाद
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