गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

अस्तित्व की बुनियाद

वो जो चांद चमक रहा दूधिया
अपना विरोध करेगा आज
फूट बिखरेगा अंगार बन कर
वह पृथ्वी के मस्तक का साज

मौन रहा वह सारे हादसे भर
मानव घातकता का निर्वाद साक्षी
पहुंच रहा अब उसकी ओर वह
विषाक्त मुखौटों में छिपा आत्म भक्छी

निचोड़ कर नींव अपने यथार्थ की
उगल कर विष की आग
जली प्रकृति जो माँ हमारी
हमारे अस्तित्व की बुनियाद

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