।।ग़ज़ल।।वक्त जाया न करेगे।।
ख़ुशनुमा आँखों की ख़ुशबू अब चुराया न करेगे ।।
अब तेरी महफ़िल में हमदम हम भी आया न करेगें ।।
जो मेरी करते शिक़ायत जा उन्ही से पूछ ले तू ।।
जब भरोसा है नही तो वक्त जाया न करेगे ।।
वो ज़माना और था जब हम तड़पते थे कभी ।।
अब किसी की कर ख़ुशामद ख़त लिखाया न करेगें ।।
याद मुझको आ रहा है वो सितम्बर का महीना ।।
भींगती रहती थी पलकें अब भिगोया न करेगें ।।
इस नजऱ के सब इशारे सिर्फ तेरे प्यार के थे ।।
अब किसी को उम्रभर हम आजमाया न करेगें ।।
प्यार पैदा कर दिया था उस तेरे वीरान दिल में ।।
जा किसी को इश्क़ में अब राहे दिखाया न करेगें ।।
शर्म न कर आजमा ले हर किसी के प्यार को तू ।।
हम तेरे रिस्तो की चर्चा अब सुनाया न करेंगे ।।
कुछ दिनों के बाद ही तू फिर मिलेगी साहिलों पर ।।
लाख़ कोशिस तू करे नजरें मिलाया न करेंगे ।।
.. R.K.MISHRA
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