शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

।।ग़ज़ल।।वक्त जाया न करेगें।।

।।ग़ज़ल।।वक्त जाया न करेगे।।

ख़ुशनुमा आँखों की ख़ुशबू अब चुराया न करेगे ।।
अब तेरी महफ़िल में हमदम हम भी आया न करेगें ।।

जो मेरी करते शिक़ायत जा उन्ही से पूछ ले तू ।।
जब भरोसा है नही तो वक्त जाया न करेगे ।।

वो ज़माना और था जब हम तड़पते थे कभी ।।
अब किसी की कर ख़ुशामद ख़त लिखाया न करेगें ।।

याद मुझको आ रहा है वो सितम्बर का महीना ।।
भींगती रहती थी पलकें अब भिगोया न करेगें ।।

इस नजऱ के सब इशारे सिर्फ तेरे प्यार के थे ।।
अब किसी को उम्रभर हम आजमाया न करेगें ।।

प्यार पैदा कर दिया था उस तेरे वीरान दिल में ।।
जा किसी को इश्क़ में अब राहे दिखाया न करेगें ।।

शर्म न कर आजमा ले हर किसी के प्यार को तू ।।
हम तेरे रिस्तो की चर्चा अब सुनाया न करेंगे ।।

कुछ दिनों के बाद ही तू फिर मिलेगी साहिलों पर ।।
लाख़ कोशिस तू करे नजरें मिलाया न करेंगे ।।

.. R.K.MISHRA

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