शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

मेरी ग़ज़ल, तेरी ग़ज़ल ........

  • इस तरह मिला दिए दूजे से हमने अपने सुर
    जिंदगी बन गयी ये मेरी ग़ज़ल, तेरी ग़ज़ल

    पल ख़ुशी के हो या गम के, मस्ती या रंज के
    झेलंगे हर हाल में, काके अच्छे बुरे पर अमल !!

    किया फैसला हमने जमाने से करेंगे दो दो हाथ
    मिटा के बुराई, हम खुशियो के खिलाएंगे कमल !!

    तुम में अब तुम न रहो, रहे न हम में हम
    आओ कर ले अपनी रूह से रूह का मिलन !!

    माना के “धर्म” जालिम बहुत ये बेदर्द जमाना,
    लाख करे सितम, मुकाम में फिर भी होंगे सफल !!
    !
    !
    !

    [[_______डी. के. निवतियाँ _____]]

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